पृष्ठ:रघुवंश.djvu/१९

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भूमिका।
 


सी० चैटर्जी, एम० ए०, बी० एल० एक वकील हैं। आपकी रचित कालिदास-विषयक ढाई सौ पृष्ठ की एक पुस्तक अभी कुछ दिन हुए प्रकाशित हुई है। पुस्तक अँगरेज़ी में है। उसमें कालिदास से सम्बन्ध रखने वाले अनेक विषयों का वर्णन और विचार है। एक अध्याय उसमें कालिदास के स्थिति-समय पर भी है। चैटर्जी महोदय का मत है कि कालिदास मालव-नरेश यशोधा के शासन-काल, अर्थात् ईसा की छठी सदी, में वर्तमान थे। इनकी एक कल्पना बिलकुल ही नई है। उसे थोड़े में सुन लीजिए।

बड़े बड़े पण्डितों का मत है कि कपिल के सांख्य-प्रवचन-सूत्र सब से पुराने नहीं। किसी ने उन्हें पीछे से बनाया है। ईश्वरकृष्ण की सांख्य, कारिकाये ही सांख्य-शास्त्र का सबसे पुराना ग्रन्थ है। और, ईश्वरकृष्ण ईसा के छठे शतक के पहले के नहीं। कालिदास ने कुमारसम्भव में जो लिखा है :-

स्वामामनन्ति प्रकृति पुरुषार्थप्रवर्तिनीम्।
तहशिनमुदासीनं त्वामेव पुरुष विदुः॥

वह सांख्यशास्त्र का सारांश है। जान पड़ता है कि उसे कालिदास ने ईश्वरकृष्ण के ग्रन्थ को अच्छी तरह देखने के बाद लिखा है। दोनों की भाषा में भी समानता है और सांख्यतत्व-निदर्शन में भी। इस बात की पुष्टि में चैटर्जी महाशय ने रघुवंश के तेरहवें सर्ग का एक पद्य, और रघुवंश तथा कुमारसम्भव में व्यवहृत 'सङ्घात' शब्द भी दिया है। आपकी राय है कि 'सङ्घात' शब्द भी कालिदास को ईश्वरकृष्ण ही के ग्रन्थ से मिला है। यहाँ पर यह शङ्का हो सकती है कि ईसा के छठे ही शतक में ईश्वरकृष्ण भी हुए और कालिदास भी। फिर किस तरह अपने समकालीन पण्डित की पुस्तक का परिशीलन करके कालिदास ने उसके तत्व अपने काव्यों में निहित किये। क्या मालूम ईश्वरकृष्ण छठी सदी में कब हुए और कहाँ हुए ? यदि यह मान भी लिया जाय कि कालिदास छठी ही सदी में थे तो भी इसका क्या प्रमाण कि वे ईश्वरकृष्ण से दस बीस वर्ष पहले ही लोकान्तरित नहीं हुए ? इसका भी क्या प्रमाण कि ईश्वरकृष्ण की कारिकाओं के पहले सांख्य का और कोई ग्रन्थ