पृष्ठ:रघुवंश.djvu/२११

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रघुवंश ।

की सहायता के लिए सदा तत्पर रहता है । इन्द्र का और मेरा सम्बन्ध तुम, अग्नि और पवन ही का जैसा सम्बन्ध, समझो । रावण के नौ सिर तो उसी के खन से कट चुके हैं, दसवाँ नहीं कटा। वह उसके खङ्ग से बच रहा है । उसे उसने मेरे चक्र का उचित भाग सा समझ कर, उससे काटे जाने के लिए, रख छोड़ा है । चन्दन का वृक्ष जैसे सर्प का चढ़ना सहन करता है उसी तरह, ब्रह्मा के वरदान के प्रभाव से मैं उस दुरात्माज्ञसुर-शत्रु का सिर चढ़ना, किसी तरह, सहन कर रहा हूँ। उग्र तपस्याज्ञकरके उसने ब्रह्मा को प्रसन्न किया, तो ब्रह्मा उसे वर देने को तैयार हुए। इस पर उसने यह वर माँगा कि मैं देवताओं के हाथ से न मर सकूँ। मनुष्यों को तो वह कोई चीज़ हो नहीं समझता। इससे उनके हाथ से न मारे जाने का वर उसने न माँगा । ब्रह्मा के इसी वरदान की बदौलत वह अजेय हो रहा है; कोई देवता उसे नहीं मार सकता । अब मैं मनुष्य का अवतार लेकर ही उसे मारूँगा । मैं राजा दशरथ का पुत्र होकर, अपने पैने बाणों से उसके सिर काट काट कर, रणभूमि की पूजा के लिए, उन्हें कमलों का ढेर बना दूंगा । घबराओ मत; मैं उसके सिररूपी कमलों से रणभूमि की पूजा करके, तुम्हारा सारा सन्ताप दूर कर दूं गा । याज्ञिक लोग यज्ञों में जो हविर्भाग तुम्हें विधिपूर्वक देते हैं उसे ये मायावी राक्षस छकर अपवित्र कर डालते हैं और खा तक जाते हैं। इस दुष्कर्म का बदला बहुत जल्द इन्हें मिलेगा और तुम्हें तुम्हारा यज्ञ-भाग पहले ही की तरह प्राप्त होने लगेगा। तुम लोगों को तङ्ग करने के लिए, पुष्पक विमान पर सवार हुआ रावण, आकाश में चक्कर लगाया करता है। इस कारण उसके डर से तुम अपने अपने विमानों पर बैठे हुए बादलों में छिपते फिरते हो। तुम अपने इस डर को गया ही समझो । अब तुम उससे मत डरो। मैं उसकी शीघ्र ही खबर लूँगा। रावण को यदि नलकूबर का यह शाप न होता कि यदि तू किसी स्त्री पर अत्याचार करेगा तो तेरे सिर के सौ टुकड़े हो जायेंगे, तो जिन देवाङ्गनाओं को उसने अपने यहाँ कैद कर रक्खा है उन पर वह अत्याचार किये बिना न रहता। इसी शाप के डर से वहज्ञसुराङ्गनाओं के शरीर पर हाथ लगा कर उन्हें अपवित्र नहीं कर सका। जिस दिन से वे कैद हुई उस दिन से उन बेचारियों ने अपनी बेनियाँ तक