पृष्ठ:रघुवंश.djvu/२१३

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रघुवंश ।

उसने वह खीर पहले अपने हाथ से दी। फिर उसने उनसे कहा कि अब तुम्ही अपने अपने हिस्से से थोड़ी थोड़ी खीर सुमित्रा को देने की कृपा करो। राजा की यह इच्छा थी कि सब को अपना अपना हिस्सा भी मिल जाय और कोई किसी से अप्रसन्न भी न हो । उसके मन की बात कौसल्या और कैकेयी ताड़ गई,अतएव, उन्होंने चरु के आधे आधे हिस्सों से सुमित्रा का सम्मान किया। सुमित्रा को वे दोनों स्वयं भी चाहती थीं। सुमित्रा थी भी बड़ी सुशीला। हाथी की दोनों कनपटियों से बहने वाले मद की दो धाराओं पर भारी का प्रेम जैसे तुल्य होता है वैसे ही उन दोनों रानियों पर सुमित्रा का भी प्रेम सम था। वह उन दोनों का एक साप्यार करती थी। इसी से वह उनकी भी प्यारी थी और इसी से उन्होंने सुमित्रा को अपने अपने हिस्से से प्रसन्नतापूर्वक खीर दे दी । खीर खाने से उनके, विष्णु के अंश से उत्पन्न हुआ, गर्भ रह गया । सूर्य की अमृता-नामक किरणों जिस तरह जलरूपी गर्भ धारण करती हैं उसी तरह उन्होंने भी उस गर्भ को, लोक कल्याण की इच्छा से, धारण किया ।

तीनां रानियाँ साथ ही गर्भिणी हुई । उनके शरीर की कान्ति पीली पड़ गई। वे, उस समय, अपने भीतर फलों के अंकुर धारण किये हुए अनाज के पौधों की शाखाओं के सदृश, शोभायमान हुई । उन तीनों ने रात को स्वप्न में देखा कि शङ्ख, चक्र, गदा, खड्ग और धनुष लिये हुए बौने मनुष्य उनकी रक्षा कर रहे हैं । उन्होंने यह भी देखा कि गरुड़ अपने सुनहले पंखों की प्रभा को चारों तरफ़ फैला रहा है और बड़े वेग से उड़ने के कारण बादलों को अपने साथ खींचे लिये जा रहा है। वे उसी पर सवार हैं और आकाशमार्ग से कहीं जा रही हैं। उन्होंने यह भी स्वप्न में देखा कि लक्ष्मीजी,कमलरूपी पङ्खा हाथ में लिये हुए, और नारायण से धरोहर के तौर पर प्राप्त हुई कौस्तुभ मणि को छाती पर धारण किये हुए, उनकी सेवा कर रही हैं। उन्होंने यह भी देखा कि सात ब्रह्मर्षि आकाश-गङ्गा में स्नान करके आये हैं और वेद-पाठ करते हुए उनकी पूजा कर रहे हैं। अपनी तीनों रानियों से इस तरह स्वप्नों के समाचार सुन कर राजा दशरथ को परमानंद हुआ। वह कृतार्थ हो गया। उसने मन ही मन कहा:-"जगत्पिता भगवान् विष्णु के पिता होने का सौभाग्य मुझे प्राप्त होगा । अतएव मेरे सदृश भाग्यवान और कौन है ?"