के ही, उन पर प्रत्यञ्चा चढ़ा दी। धनुष पर प्रत्यञ्चा चढ़ाना उनके लिए कोई बड़ी बात न थी । वह तो उनके लिए एक प्रकार का खेल सा था।
राम-लक्ष्मण ने धनुष चढ़ा कर प्रत्यञ्चा की घोर टङ्कार की। उसे सुनते ही, अँधेरे पाख की रात की तरह काली काली ताड़का, नर-कपालों के हिलते हुए कुण्डल पहने, वहाँ पहुँच गई । उस समय वह भूरे रङ्ग की बगलियों सहित मेघों की घनी घटा के समान मालूम हुई । मुर्दो के शरीर पर से उतारे गये मैले कुचैले कपड़े पहने, वह इतने वेग से वहाँ दौड़ती हुई आई कि रास्ते के पेड़ हिल गये । मरघट में उठे हुए बड़े भारी बगूले की तरह आकर और भयङ्कर नाद करके उसने रामचन्द्र को डरा दिया। कमर मैं मनुष्य की आँतों की करधनी पहने हुए और एक हाथ को लठ की तरह ऊपर उठाये हुए वह रामचन्द्र पर दौड़ी। उसे इस तरह आक्रमण करने के लिए आती देख राम ने बाण के साथ ही स्त्री-हत्या की घृणा भी छोड़ दी--इस बात की परवा न करके कि स्त्री का वध निषिद्धज्ञहै, उन्होंने धनुष तान कर ताड़का पर बाण छोड़ ही दिया। ताड़का की शिला सदृश कठोर छाती को फाड़ कर वह बाण पीठ की तरफ़ बाहर निकल आया। उसने उस राक्षसी की छाती में छेद कर दिया। राक्षसों के देश में तब तक प्रवेश न पाये हुए यमराज के घुसने के लिए इस छेद ने द्वार का काम किया। राक्षसों का संहार करने के लिए, इसी छेद के रास्ते, यमराज उनके देश में घुस सा आया। रावण की राज्य-लक्ष्मी अब तक खूब स्थिर थी। तीनों लोकों का पराजय करने से उसकी स्थिरता बहुत बढ़ गई थी। उसके भी डगमगाने का समय आ गया। बाण से छाती छिद जाते ही ताड़का धड़ाम से ज़मीन पर गिर गई । उसके गिरने से उस तपोवन की भूमि तो हिल ही गई; रावण की अत्यन्त स्थिर हुई वह राज्य-लक्ष्मी भी हिल उठी। रावण के भी भावी पतन का सूत्रपात हो गया। जिस तरह अभि- सारिका स्त्री, पञ्चशायक के शायक से व्यथित होकर, शरीर पर चन्दन और कस्तूरी आदि का लेप लगाये हुए अपने जीवितेश ( पेमपात्र ) के पास जाती है उसी तरह, रामचन्द्र के दुःसह शर से हृदय में अत्यन्त पीड़ित हुई निशाचरी ताड़का, दुर्गन्धिपूर्ण रुधिर में सराबोर हुई, जीवितेश (यम) के घर पहुंच गई।