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कालिदास की कविता।


योग द्वारा उन्होंने अपने मनोभावों को मनोहर से मनोहर रूप देकर व्यक्त किया है।

श्रीयुत अरविन्द घोष ने कालिदास पर एक निबन्ध लिखा है। उसमें उन्होंने कालिदास की कविता के विषय में जो राय दी है उसका आशय नीचे दिया जाता है:-

"कालिदास की तर्कना-शक्ति बहुत ही अच्छी थी। शृङ्गार और करुण रस के वर्णन में वे सिद्धहस्त थे। कालिदास में प्रधान गुण यह था कि वे प्रत्येक काव्योपयोगी सामग्री को-काव्य के प्रत्येक अंश को-बड़े ही कौशल से सुन्दर बना देते थे। अपने वर्णनीय विषय की मूर्ति पाठकों के सामने खड़ी कर देने की जैसी शक्ति कालिदास में थी वैसी और किसी कवि में नहीं पाई जाती।

'बड़े बड़े कवि जब बहुत उत्तेजित होकर किसी बात का वर्णन करने लगते हैं तभी उनमें उस बात को प्रत्यक्षवत् दिखा देने की शक्ति आती है। पर कालिदास में यह विलक्षण शक्ति सब समय वर्तमान रहती थी। इसी शक्ति के साथ अपनी सौन्दर्य-कल्पना की सर्वश्रेष्ठ शक्ति को मिला कर वे काव्यचित्र बनाया करते थे। वे जैसे उत्तम विषय की कल्पना कर सकते थे वैसे ही उसे खूबसूरती के साथ सम्पन्न भी कर सकते थे। भाषा और शब्दों के सौन्दर्य तथा उनकी ध्वनि और अर्थ आदि का भी वे बड़ा ख़याल रखते थे। उन्होंने संस्कृत-भाषा के भाण्डार से बहुत ही ललित छन्दों और भावपूर्ण सरस शब्दों को चुन चुन कर अपनी कविता के काम में लगाया है। इससे उनकी रचना देववाणी की तरह मालूम होती है। कालिदास की भावोद्बोधन शक्ति ऐसी अच्छी थी कि पिछले हज़ार वर्ष के संस्कृत-साहित्य में सर्वत्र उसी की प्रतिध्वनि सुनाई पड़ती है। इनकी कविता में संक्षिप्तता, गम्भीरता और गौरव--तीनों बातें पाई जाती हैं। भाषा की सुन्दरता और प्रसङ्गानुकूल शब्दों की योजना से इनकी रचना का सौन्दर्य और माधुर्य और भी बढ़ गया है। यों तो कालिदास ने सभी विषयों का वर्णन बड़े ही ललित पद्यों में किया है। पर इनके ऐतिहासिक काव्य और नाटक बहुत ही अच्छे हैं। ऐतिहासिक काव्य-रचना में कालिदास मिल्टन से भी बढ़ गये हैं। इनके नाटकों की भाषा में असाधारण