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चौदहवाँ सर्ग।

किया। यज्ञों के अनुष्ठान के समय जब जब पत्नी की उपस्थिति की आवश्यकता हुई तब तब उन्होंने सीता की ही मूर्ति अपने पास रख कर सारी धार्मिक क्रियायें निपटाई। सीताजी पर यह उनकी कृपा ही समझनी चाहिए। क्योंकि, यह बात जब सीताजी के कान तक पहुँची तब उनका शोक कुछ कम हो गया और अपने दुःसह परित्याग-दुःख को उन्होंने किसी तरह सह लिया । यदि रामचन्द्रजी उनपर इतनी भी दया न दिखाते तो दुःखाधिक्य से दबी हुई सीता की न मालूम क्या दशा होती !