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रघुवंश ।

एक दिन की बात सुनिए। किसी ग्रामीण ब्राह्मण का पुत्र, युवा होने के पहले ही, अकस्मात् मर गया । वह ब्राह्मण, उसे गोद में लिये हुए, राजा रामचन्द्र के यहाँ आया। वहाँ, द्वार पर, उसने लड़के को गोद से उतार कर रख दिया और चिल्ला चिल्ला कर रोने लगा। वह बोला:-

"अरी पृथ्वी! तेरे दुर्भाग्य का क्या ठिकाना । तू बड़ी ही अभा- गिनी है। दशरथ के बाद रामचन्द्र के हाथ में आने से तेरी बड़ी ही दुर्दशा हो रही है। तेरे कष्ट दिन पर दिन बढ़ते ही जाते हैं !!!"

रामचन्द्रजी ने उस ब्राह्मण से उसके शोक का कारण पूछा। उसने सारा हाल कह सुनाया। रामचन्द्रजी तो प्रजा के पालन और असहायों के रक्षक थे । ब्राह्मण के पुत्र की मृत्यु का हाल सुन कर वे बहुत लज्जित हुए। उन्होंने मन ही मन कहा:-

"अब तक तो इक्ष्वाकुवंशी राजाओं के देश पर अकाल-मृत्यु के पैर नहीं पड़े थे । मामला क्या है, जो इस ब्राह्मण का बेटा अकाल ही में काल का कौर हो गया ।"

उन्होंने उस दुःखदग्ध ब्राह्मण को बहुत कुछ आसा-भरोसा दिया और उससे कहा:-

"आप घबराइए नहीं। ज़रा देर आप यहाँ ठहरिए । आपका दुःख दूर करने का मैं कुछ उपाय करना चाहता हूँ।"

यह कह कर उन्होंने यमराज पर चढ़ाई करने का विचार किया। तत्काल ही उन्होंने कुवेर के पुष्पक विमान को याद किया। याद करते ही वह रामचन्द्रजी के सामने आकर उपस्थित हो गया। उन्होंने अपने शस्त्रास्त्र साथ लिये। फिर वे विमान पर सवार हो गये। उन्हें लेकर विमान उड़ चला।

रामचन्द्रजी कुछ ही दूर गये होंगे कि आकाशवाणी हुई। उन्होंने सुना कि सामने ही कोई कह रहा है:-

"हे राजा ! तेरे राज्य में कुछ दुराचार हो रहा है। उसका पता लगा कर उसे दूर कर दे तो तेरा काम बन जाय । उसके दूर होते ही तू कृतकृत्य हो जायया ।"

रामचन्द्रजी ने इस आकाश-वाणी को सच समझा। उन्हें इस पर