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कालिदास की कविता।


स्वभाववाले मनुष्यों के भिन्न भिन्न चित्र अङ्कित किये हैं। कालिदास ने भी ठीक वैसा ही किया है। जिसका जैसा स्वभाव है उसका वैसा ही चित्र उन्होंने उतारा है। जिस कार्य का जैसा परिणाम होना चाहिए उसका वैसाही निदर्शन उन्होंने किया है। प्रेमियों की जो दशा होती है, उनके हृदय में जिन विकारों का प्रादुर्भाव होता है, वे अपने प्रेमपात्र कों जिस दृष्टि से देखते हैं-कालिदास और शेक्सपियर दोनों के नाटको में इन बातों का सजीव चित्र देखने को मिलता है। शेक्सपियर के मैकबेथ, ओथेलो, रोमियो, जूलियट, मिरंडा और देसदेमोना आदि के चित्रों का मिलान कालिदास के दुष्यन्त, अग्निमित्र, पुरूरवा, शकुन्तला, प्रियवदा आदि के चित्रों से करने पर यह बात अच्छी तरह समझ में आ जाती है कि इन दोनों महाकवियों को मानवी स्वभाव का कितना तलस्पर्शी ज्ञान था। कहीं कहीं पर तो इन महाकवियों के नाटक-पात्रों ने, तुल्य प्रसङ्ग आने पर, ठीक एकहीसा व्यवहार किया। शकुन्तला के विषय में दुष्यन्त कहता है:-

अभिमुखे मयि संहृतमीक्षितं हसितमन्यनिमित्तकथोदयम्

रोमियो भी जूलियट के विषय में प्रायः यही कहता है:-

She will not stay the siege of loving terms,

Nor bide the encounter of assailing eyes.

शेक्सपियर और कालिदास में यदि कुछ भेदभाव है तो यह है कि कालिदास प्रकृति-ज्ञान में अद्वितीय थे और शेक्सपियर मानवमनोभाव-ज्ञान में। मानव-जाति के मनोभावों का जैसा सजीव चित्र शेक्सपियर ने चित्रण किया है वैसाही सजीव चित्र कालिदास ने प्राकृतिक पदार्थों का चित्रण किया है। कालिदास बहिर्जगत् के चित्रकार या व्याख्याता थे, शेक्सपियर अन्तर्जगत् के। मानवी मनोविकारों का कोई भेद शेक्सपियर से छिपा नहीं रहा। उसी तरह सृष्टि में जितने प्राकृतिक पदार्थ हैं-जितने प्राकृतिक दृश्य हैं-उनका कोई भी रहस्य कालिदास से छिपा नहीं रहा। कवित्वशक्ति दोनों में ऊँचे दरजे की थो; परन्तु एक की शक्ति अन्तर्जगत् के रहस्यों का विश्लेषण करने की तरफ़ विशेष झुकी हुई थी, दूसरे की बहिर्जगत् के। इस निष्कर्ष से सब लोग सहमत हों या न हों; परन्तु