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रघुवंश ।

बनी हुई हैं। उन पर, पहले, रम्यरूप रमणियों के महावर लगे हुए, कमल कोमल पैरों का सञ्चार होता था। पर, आज कल, बड़े बड़े बाघ, मृगों को तत्काल मार कर, उनका लोहू लगे हुए अपने पजे, सीढ़ियों पर रखते हुए, उन्हीं सड़कों पर बेखटके घूमा करते हैं।

"अयोध्या की दीवारों आदि पर जो चित्रकारी है उसकी भी दुर्गति हो रही है। कहीं कहीं दीवारों पर हाथियों के चित्र हैं। उनमें यह भाव दिखाया गया है कि हाथी कमल-कुञ्जों के भीतर खड़े हैं और हथनियाँ उन्हें मृणाल-तन्तु तोड़ तोड़ कर दे रही हैं। परन्तु अब वह पहली अयोध्या तो है नहीं । अब तो वहाँ शेर घूमा करते हैं । अतएव वे जब इन चित्र-लिखित हाथियों को देखते हैं तब उन्हें सजीव समझ कर उन पर टूट पड़ते हैं और उनके मस्तकों को अपने नाखूनों से विदीर्ण कर डालते हैं। इन क्रोध से भरे हुए शेरों के प्रहारों से उन चित्रगत हाथियों की रक्षा करने वाला, हाय ! वहाँ अब कोई नहीं।

"खम्भों पर खुदी हुई स्त्रियों की मूर्तियाँ वहाँ कैसी भलो मालूम होती थी। परन्तु, अब, उनका रंग, कहीं कहीं, उड़ गया है और उनमें बेहद धुंधलापन आ गया है। जिन खम्भों पर ये मूर्तियाँ हैं उन पर साँप लिपटे रहते हैं । वे अपनी केंचुलें वहीं, मूर्तियों पर ही, छोड़ देते हैं । वे केंचुलें, इस समय, उन मूर्त्तिमती स्त्रियों की चोलियाँ बन रही हैं।

"अयोध्या के विशाल महलों की भी दशा, इस समय, बहुत ही बुरी है। उन पर घास उग रही है । पलस्तर का चूना काला पड़ गया है, उस पर काई लग गई है। इस कारण, मोतियों की लड़ो के समान निर्मल भी चन्द्र-किरणे, अब, उन पर नहीं चमकती।

"हाय ! हाय ! अपने फूल-बागों की लताओं की दुर्गति तो और भी मुझ से नहीं देखी जाती । एक समय था जब विलासवती बालायें उनकी डालों को इतनी दयादृष्टि से देखती थीं कि टूट जाने के डर से उन्हें धीरे धीरे झुका कर उनके फूल चुनती थीं। परन्तु, आज कल, उनकी उन्हीं डालों को जङ्गलो बन्दर- पुलिन्द नामक असभ्य म्लेच्छों की तरह-तोड़ा-मरोड़ा करते हैं और उन्हें तरह तरह की पीड़ा पहुँचाते रहते हैं ।

"मेरी पुरी के झरोखों पर नज़र डालने से न तो रात को उनसे दीपक