पृष्ठ:रघुवंश.djvu/३१६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२५५
सोलहवाँ सर्ग।


था उनसे गिरे हुए फूल उसमें वह रहे थे और लहरों के लोभी मत्त राजहंस उसमें कलोलें कर रहे थे। जल-विहार का निश्चय करके पहले तो चक्रधारी भगवान् विष्णु के समान प्रभाववाले राजा कुश ने जाल डलवा कर सरयू के सारे मगर और घडियाल निकलवा डाले। फिर उसके तीर पर सैकड़ों तम्बू उसने तनवा दिये। तदनन्तर उसने अपनी प्रभुता और महिमा के अनुसार, राजसी ठाठ से, उसमें विहार करना प्रारम्भ कर दिया।

राजा कुश के रनिवास की स्त्रियाँ किनारे पर लगे हुए पट-मण्डपों से एकही साथ निकल पड़ी और पैरों में पहने हुए नूपुरों का शब्द करती हुई नदी की सीढ़ियों से नीचे उतरने लगीं। उस समय वे इस तरह पास पास भिड़ कर उतरी कि एक दूसरी के भुजबन्द परस्पर रगड़ गये। जहाँ वे जल में कूद कर मनमाना विहार करने लगी वहाँ नदी के भीतर कलोलें करने वाले हंस भयभीत होकर भाग गये।

स्त्रियों में परस्पर छींटों की मार होने लगी। यह देख कर राजा का जी ललचा उठा। उसने अपने लिए एक नाव मॅगाई। उसी पर बैठ कर वह उन स्त्रियाँ के नहाने का तमाशा देखने लगा। उस समय उसके पास खड़ी हुई एक किरात-कान्ता उस पर चमर कर रही थी। मौज मैं आकर राजा उससे इस प्रकार कहने लगाः-

"देख, मेरे रनिवास की सैकड़ों स्त्रियाँ किस तरह प्रमोदमत्त होकर विहार कर रहीं हैं। उनके अङ्गों पर लगे हुए सुगन्धित पदार्थ-चन्दन, कस्तूरी आदि-छूट कर लहरों के साथ बहते चले जा रहे हैं। उनके मिश्रण से सरयू का जल-लाल, पीले बादल बिखरे हुए सन्ध्या-समय के सदृशरङ्ग-बिरङ्गी शोभा दिखा रहा है। नावों के हिलाये हुए सरयू के सलिल ने मेरे अन्तःपुर की सुन्दरी नारियों की आँखों के जिस अञ्जन को धो डाला था उसी को उसने फिर उन्हें लौटा सा दिया है। इनकी आँखों में यौवन के मद से छाई हुई लालिमा की शोभा को सरयू के कम्पमान जल ने जो बढ़ा दिया है उससे यही मालूम होता है कि उसने उनका अञ्जन फिर उन्हीं को दे दिया और कह दिया-लो तुम्हारा अञ्जन तुम्हीं को मुबारक रहे; मुझे न चाहिए। पानी और अजन का साथ कितने दिन तक रह सकता है ?

इन लोगों के शरीर के कुछ अवयव बहुत भारी हैं। उनके भारी-