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रघुवंश।

पन के कारण, तैरते समय, ये आसानी से आगे नहीं बढ़ सकती। फिर भी, जल में खेल-कूद का इन्हें इतना चाव है कि दुःख सह कर भी ये गाढ़े भुजबन्द बंधी हुई अपनी बाहों से तैर रही हैं। वारि-विहार करते समय इन लोगों के सिरस फूल के गहने इनके कानों से गिर गये हैं। उन्हें नदी की धारा में बहते देख मछलियों को बड़ा धोखा होता है। क्योंकि उन्हें सिवार बहुत पसन्द है । अतएव इन गहनों को सिवार ही समझ कर मछलियाँ इन्हें पकड़ने दौड़ती हैं और धोखा खाती हैं । उमङ्ग में आकर ये स्त्रियाँ अपने हाथों से जल को कैसा उछाल रही हैं । ज़ोर से जल उछाले जाने के कारण, मोती के समान बड़े बड़े जल कणों की वर्षा इनके वक्षःस्थल पर हो रही है। इससे, यद्यपि इनके हार टूट कर गिरने ही चाहते हैं तथापि इन्हें इस बात की कुछ खबर ही नहीं। जल-कणों और हार के मोतियों में तुल्यता होने के कारण स्त्रियों को इसका ज्ञानही नहीं कि उनके हार टूट रहे हैं या साबित हैं। गहरी नाभि की शोभा की उपमा जल की भौरों की शोभा से दी जाती है, भौहों की तरङ्गों से दी जाती है और वक्षोजों की चकवा-चकवी के जोड़े से दी जाती है । रूप और अवयवों की उपमा का यह सारा सामान, इस समय, इन विला- सवती जल-विहारिणी रमणियों के पासही मौजूद है। इनके अवयव आदि के उपमान ढूँढ़ने के लिए दूर जाने की ज़रूरत नहीं । वारिरूपी मृदङ्ग बजा कर ये गाती भी जाती हैं । उसे सुन कर, पूँछे ऊपर उठाये हुए तीरवर्ती मोर, अपनी मधुर कूक से, इनके गीत-वाद्य की प्रशंसा सी कर रहे हैं । आहा ! जलरूपी मृदङ्ग की ध्वनि जो ये कर रही हैं वह कानों को बहुतही प्यारी मालूम होती है । भीगने के कारण इनकी बारीक साड़ी इनके गोरे गोरे बदन पर चिपक सी गई है । उसी के ऊपर, इनकी कमर में, करधनी पड़ी है। उसकी घुघुरुओं के कुन्दों के भीतर पानी भर गया है । अतएव घुघुरू-चन्द्रमा की चाँदनी से ढके हुए तारों की तरह-मौन सा धारण किये हुए अपूर्व शोभा पा रहे हैं। पानी उछालने में ये एक दूसरी की स्पर्धा कर रही हैं। कोई भी नहीं चाहती कि मैं इस काम में किसी से हार जाऊँ। इस कारण, घमण्ड मैं आकर, ये अपने हाथ से पानी की धारा उछाल कर बड़े ज़ोर से अपनी सखियों के मुँह पर मारती हैं। इस मार से