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सोलहवाँ सर्ग।


इनके खुले हुए बाल भीग जाते हैं। अतएव कुमकुम लगे हुए बालों की सीधी नोकों से ये तरुणी नारियाँ पानी की लाल लाल बूंदों की वर्षा कर रही हैं। इनके बाल खुल गये हैं; इनके शरीर पर काढ़े गये केसर-कस्तूरी आदि के बेल बूटे धुल गये हैं; और, इनके मोतियों के कर्णफूल खुल कर नीचे लटक गये हैं-जल-क्रीड़ा के कारण यद्यपि इनके मुख पर व्याकुलता के ये चिह्न दिखाई दे रहे हैं, तथापि इनका मुख फिर भी सुन्दरहो मालूम होता है।"

यहाँ तक अपने रनिवास की रमणियों के वारि-विहार का वर्णन कर चुकने पर, कुश का भी मन सरयू में स्नान करने के लिए चञ्चल हो उठा। अतएव, वह विमान के समान बनी हुई नौका से उतर पड़ा और छाती पर हिलता हुआ हार धारण किये हुए वह भी अपनी नारियों के साथ जल-विहार करने लगा। उस समय वह ऐसा मालूम हुआ जैसे उखाड़ी हुई कमलिनी को कन्धे पर डाले हुए जङ्गली हाथी, हथिनियों के साथ, जल में खेल रहा हो। जब वह सुस्वरूप और कान्तिमान राजा भी जल में कूद कर विहार करने लगा तब उन सौन्दर्यवती स्त्रियों की सुन्दरता और भी बढ़ गई—उसके संयोग से उनकी शोभा और चारुता चौगुनी हो गई। मोती स्वभाव ही से सुन्दर होते हैं। तिस पर यदि कहीं उनसे चमकते हुए इंद्रनीलमणि का संयोग हो जाय तो फिर क्या कहना है। राजा को पाकर वे विशालनयनी नारियाँ दूने उत्साह से जलक्रीड़ा करने लगी। सोने की पिचकारियों में बाल-पीला रङ्ग भर भर कर वे बड़े प्रेम से राजा को भिगोने लगी। जिस समय कुश पर, इस प्रकार, सब तरफ़ से रङ्ग पड़ पड़ कर नीचे गिरने लगा उस समय उसकी शरीर-शोभा बहुत ही बढ़ गई-ऐसा मालुम होने लगा जैसे गिरिराज हिमालय से गेरू आदि धातु मिले हुए झरने कर रहे हो। रनिवास की स्त्रियों के साथ उसने उस श्रेष्ठ सरिता में घंटों विहार करके, अप्सराओं के साथ आकाश-गङ्गा में बिहार करने वाले सुरेश्वर इन्द्र को भी मात कर दिया।

इस जल-विहार में एक दुर्घटना हो गई। जिस अलौकिक आभूषण को रामचन्द्रजी ने महामुनि अगस्त्य से पाया था वह इस समय कुश के पास था। जल-विहार करते समय वह उसे पहने हुए था। रामचन्द्रजी ने राज्य