पृष्ठ:रघुवंश.djvu/३१९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२५८
रघुवंश।


के साथ हो उसे भी कुश के हवाले कर दिया था। दैवयोग से वह नदी में गिर कर डूब गया और कुश ने न जाना। यह एक प्रकार का भुजबन्द था। इसमें यह गुण था कि इसके बाँधनेवाले को सामने समर में कोई भी न हरा सकता था।

स्त्रियों के साथ इच्छापूर्वक जल-विहार करके कुश तीर पर लगे हुए अपने तम्बू में लौट आया। वहाँ आते ही कपड़े तक वह बदल न पाया था कि उसे अपनी भुजा, उस दिव्य आभूषण से सूनी, देख पड़ी। उस आभूषण का इस तरह खो जाना कुश से न सहा गया। इसका कारण लोभ न था। लोभ तो उसे छू तक न गया था। क्योंकि वह विद्वान् और समझदार था-तुच्छ फूल और बहुमूल्य भूषण को वह तुल्य समझता था। बात यह थी कि वह आभूषण उसके पिता रामचन्द्रजी का धारण किया हुआ था और युद्ध में विजय को वशीभूत करने की शक्ति रखता था। इसीसे उसे उसके खो जाने का दुःख हुआ।

नदी में घुस कर डुबकी लगानेवाले सैकड़ों मछुवों को उसने तत्काल ही हुक्म दिया कि खोये हुए आभूषण को ढूंढ़ निकालो। राजाज्ञा पाकर उन लोगों ने रत्ती रत्तो सरयू ढूँढ़ डाली। पर उनका सारा श्रम व्यर्थ गया। वह आभूषण न मिला। तब, लाचार होकर, वे राजा के पास गये और अपनी विफलता का हाल कह सुनाया। परन्तु कहते समय उन लोगों ने अपने चेहरों पर उदासीनता या भय का कोई चिह्न न प्रकट किया। वे बोले:-

"महाराज! जहाँ तक हम से हो सका हमने ढूँढ़ा। यत्न करने में हम लोगों ने कोई कसर नहीं की। परन्तु जल में खाया हुआ आपका वह सर्वोत्तम आभरण न मिला। हमें तो ऐसा जान पड़ता है कि सरयू-कुण्ड के भीतर रहने वाला कुमुद नामक नाग, लोभ में प्राकर, उसे ले गया है और वह उसी के पास है। उसके पास न होता तो वह ज़रूर ही हम लोगों को मिल जाता।"

यह सुन कर प्रबल पराक्रमी कुश जल-भुन गया। क्रोध से उसकी आँखें लाल हो गई। उसने तुरन्त ही धनुष पर प्रत्यञ्चा चढ़ा दी और नदी के तट पर जाकर नागराज कुमुद को मारने के लिए तरकस से गरुड़ास्त्र