सूर्य की उष्णता से पानी भाफ बन कर उड़ जाता है । वही बरसता है। इस बात को भी वे जानते थे। कुमारसम्भव का चौथा सर्ग इसकी गवाही दे रहा है:-
रघुवंश के:-
इस पद्याद्ध से भी यही बात सिद्ध होती है।
"अयस्कान्तेन लोहवत्"-लिख कर उन्होंने यह सूचना दी है कि हम चुम्बक के गुणों से भी अनभिज्ञ नहीं ।
कालिदास चाहे अनुभवशील वैद्य न रहे हों; चाहे उन्होंने आयुर्वेद का विधिपूर्वक अभ्यास न किया हो; परन्तु इस शास्त्र से भी उनका थोड़ा बहुत परिचय अवश्य था। और, सभी सत्कवियों का परिचय प्रधान प्रधान शास्त्रों से अवश्यही होना चाहिए। बिना सर्वशास्त्रज्ञ हुए-बिना प्रधान प्रधान शास्त्रों का थोड़ा बहुत ज्ञान प्राप्त किये-कवियों की कविता सर्वमान्य नहीं हो सकती । महाकवियों के लिए तो इस तरह के ज्ञान की बड़ी ही आवश्यकता होती है। क्षेमेन्द्र ने इस विषय में जो कुछ कहा है बहुत ठीक कहा है। वैद्य-विद्या के तत्वों से कालिदास अनभिज्ञ न थे। कुमारसम्भव के दूसरे सर्ग में तारक के दौरात्म्य और पराक्रम आदि का वर्णन है। उस प्रसङ्ग में कालिदास ने लिखा है :-
मालविकाग्निमित्र में सर्पदंशचिकित्सा के विषय में कविकुलगुरु की उक्ति है:-
{{Rh||एतानि दृष्टमात्राणामायुष्याः प्रतिपत्तयः ॥
इन अवतरणों से यह सूचित होता है कि कालिदास की इस शास्त्र मेंभी बहुत नहीं तो थोड़ी गति अवश्य थी।