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भूमिका।
राजनीति-ज्ञान।

इस विषय में तो कुछ कहने की आवश्यकता ही नहीं। रघुवंश में राजाओं ही का वर्णन है। उसमें ऐसी सैकड़ों उक्तियाँ हैं जो इस बात की घोषणा दे रही हैं कि कालिदास बहुत बड़े राजनीतिज्ञ थे। राजा किसे कहते हैं, उसका सबसे प्रधान धर्म या कर्तव्य क्या है, प्रजा के साथ उसे कैसा व्यवहार करना चाहिए- इन बातों को कालिदास जैसा समझते थे वैसा शायद आज कल के बड़े से भी बड़े राजे-महाराजे और राजनीतिनिपुण अधिकारी न समझते होंगे। कालिदास की-“स पिता पितरस्तासां केवल जन्महेतवः”-सिर्फ यह एक उक्ति इस कथन के समर्थन के लिए यथेष्ट है।

भूगोल-ज्ञान।

मेघदूत में कालिदास ने जो अनेक देशों, नगरों, पर्वतों और नदियों आदि का वर्णन किया है उससे जान पड़ता है कि उन्हें भारत का भौगो. लिक ज्ञान भी बहुत अच्छा था। चोल, केरल और पाण्ड्य देश का उन्होंने जैसा वर्णन किया है; विन्ध्यगिरि, हिमालय और काश्मीर के विषय में उन्होंने जो कुछ लिखा है; रघुवंश के तेरहवें सर्ग में भारतीय समुद्र के सम्बन्ध में जो उक्तियाँ उन्होंने कहीं हैं वे सब प्रायः ठीक हैं।


कालिदास के ग्रन्थ।

रघुवंश, कुमारसम्भव और मेघदूत, ये तीन काव्य और शकुन्तला, विक्रमोर्वशीय और गालविकाग्निमित्र, ये तीन नाटक कालिदास के प्रधान ग्रन्थ हैं। इनके सिवा ऋतुसंहार, शृङ्गारतिलक, श्यामलादण्डक आदि और भी कई छोटी छोटी पुस्तकें उनके नाम से प्रसिद्ध हैं।

कुमारसम्भव।

कुमारसम्भव में शिव-पार्वती के विवाह की कथा है। श्रीयुत बाबू अरविन्द घोष की राय है कि कवि ने उसमें पुरुष और प्रकृति के संयोग का चित्र दिखाया है। इसी संयोग से इस संसार की सृष्टि हुई है। इस काव्य में कवि ने यह भी स्पष्टतापूर्वक दिखाया है कि जीवात्मा किस तरह ईश्वर की खोज करता है और कैसे उसे प्राप्त करता है। इस तरह कवि ने धर्म-सम्बन्धी दो बड़े भारी आध्यात्मिक और दार्शनिक तत्वों को