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कालिदास के ग्रन्थ।


स्त्री-पुरुष के चरित्र के व्याज से प्रकट कर दिखाया है। सांसारिक विषयों के वर्णन का यह बहुत ही अच्छा ढंग है।

मेघदूत।

मेघदूत में कालिदास ने आदर्श प्रेम का चित्र खींचा है। उसको सविशेष हृदयहारी और यथार्थता-व्यञ्जक बनाने के लिए यक्ष को नायक कल्पना करके कालिदास ने अपने कवित्व-कौशल की पराकाष्ठा करदी है। निःस्वार्थ और निर्व्याज प्रेम का जैसा चित्र मेघदूत में देखने को मिलता है वैसा और किसी काव्य में नहीं। मेघदूत के यक्ष का प्रेम निर्दोष है। और, ऐसे प्रेम से क्या नहीं हो सकता ? प्रेम से जीवन पवित्र हो सकता है। प्रेम से जीवन को अलौकिक सौन्दर्य प्राप्त हो सकता है। प्रेम से जीवन सार्थक हो सकता है। मनुष्य-प्रेम से ईश्वर सम्बन्धी प्रेम की भी उत्पत्ति हो सकती है। अतएव कालिदास का मेघदूत शृङ्गार और करुण-रस से परिप्लुत है तो क्या हुआ, वह उच्च-प्रेम का सजीव उदाहरण है।

विक्रमोर्वशीय और मालविकाग्निमित्र।

विक्रमोर्वशीय में राजा पुरूरवा और उर्वशी की और मालविकाग्नि- मित्र में राजा अग्निमित्र और मालविका की कथा है। अभिनय की दृष्टि से और कविता की भी दृष्टि से ये दोनों ही नाटक अच्छे हैं। पर इनमें समाज के हित की कोई बात नहीं। केवल प्रणय और प्रणयोन्माद-वर्णन का ही इनमें प्राबल्य है। कालिदास ने शायद जान बूझ कर इनमें आदर्श चरित्रों का चित्रण नहीं किया। उन्होंने शायद समाज की तात्कालिक अवस्था का चित्र खींचने के लिए ही इन नाटकों की रचना की है। अतएव समाज की जैसी दशा थी वैसा चित्र उन्हों ने खींच दिया और दिखा दिया कि उस समय के प्रणय का यह हाल था।

अभिज्ञान-शाकुन्तल।

कालिदास का यह नाटक उनके पूर्वोक्त दोनों नाटकों से अच्छा है। ऐसा अच्छा नाटक शायद ही और किसी भाषा में हो। कलकत्ते के संस्कृत कालेज के अध्यापक श्रीयुत राजेन्द्रनाथ-देव शर्मा विद्याभूषण ने इस नाटक के विषय में जो सम्मति दी है उसका सारांश सुन लीजिए:-

अभिज्ञान-शाकुन्तल कालिदास की विश्वतोमुखी प्रतिभा, ब्रह्माण्डव्या