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कालिदास का रघुवंश।


माना है, केवल बाहरी सौन्दर्य को नहीं। कालिदास का सौन्दर्य घनिष्ठता में एकाङ्गी, किन्तु व्यापकता में सारे संसार को अपनी गोद में लिये हुए है। जैसे द्रुतप्रवाहा नदी समुद्र में मिल कर अखंड शान्ति लाम करती है, वैसे ही स्त्री-पुरुषों का प्रेम सौन्दर्य की गोद में पहुँच कर असीम शान्ति सुख पाता है। ऐसा निग्रह-युक्त प्रेम निग्रहहीन प्रेम से उत्तम ही नहीं होता, किन्तु आश्चर्यकारक भी होता है।

रवीन्द्र बाबू की सम्मति के इस अल्पांश से यह अच्छी तरह मालूम हो जायगा कि अभिज्ञान-शाकुन्तल कैसा नाटक है और उससे क्या शिक्षा मिलती है।

'कालिदास का रघुवंश।'

कालिदास के ग्रन्थों में रघुवंश सर्वश्रेष्ठ है। उसकी सर्वोत्तमता का कारण यह है कि उसमें महाकवि ने नैसर्गिक वर्णन का सबसे अच्छा चित्र उतारा है। और, सृष्टि चातुर्य का सूक्ष्म और सच्चा ज्ञान होना ही कवि का सब से बड़ा गुण है। इस गुण के सम्बन्ध में श्रीयुत राजेन्द्रनाथदेव शर्मा ने अपने 'कालिदास" नामक ग्रन्थ में बहुत कुछ लिखा है। उसका आशय नीचे दिया जाता है:-

कवि का प्रधान गुण सृष्टिनैपुण्य है। सुन्दर सुन्दर चरित्रों की सृष्टि और उस चरित्रावली का देश, काल और अवस्था के अनुसार काव्य में समावेश करना ही कवि का सर्वश्रेष्ठ कौशल है। यह कौशल जिसमें नहीं उसमें अन्य गुण चाहे जितने हों उसकी रचना उत्कृष्ट नहीं हो सकती। सृष्टिवर्णन स्वभावानुरूप होने से मनोरम होता है; स्वभाव-प्रतिकूल होने से विरक्तिजनक हो जाता है। इसी से आरव्योपन्यास की अधिकांश घटनायें सहृदय-सम्मत नहीं। स्वभाव के अनुसार जो व्यापार होते हैं, कवि की सष्टि में तदनुयायी व्यापारों ही का होना उचित है। यदि कवि अपने सृष्टि कौशल में सांसारिक व्यापार-समूह को स्वाभाविक व्यापार की अपेक्षा अधिकतर मनोहर और वैचित्र्य-विभूषित बना सके तो उसका काव्य और भी सुन्दर हो। मनुष्य के प्रधान गुणों में आत्म-त्याग भी एक गुण है। बह एक प्रकार की श्रेष्ठ सम्पत्ति है। संसार में इस आत्मत्याग के अनेक उदाहरण देखे जाते हैं। यदि कवि अपने काव्य में इस आत्म-