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कालिदास का रघुवंश।


लोकरञ्जन और राजसिंहासन निष्कलङ्क रखने के लिए राजा के द्वारा अपनी प्राणोपमा पत्नी का निर्वासनरूपी अात्मत्याग आदि अनेक लोक- हितकर और समाजशिक्षोपयोगी विषयों से रघुवंश अलंकृत है।

श्रीयुत राजेन्द्रनाथजी की यह सम्मति बहुत ही ठीक है। रघुवंश सचमुच ही सर्वश्रेष्ठ काव्य है । इसी से संस्कृत के और सैकड़ों काव्यों के रहते उसका इतना आदर है और इसी से हमने उसका भावार्थ हिन्दी में लिखने की आवश्यकता समझी।

रघुवंश के नाम ही से यह सूचित होता है कि उसमें रघुवंशी राजाओं की कथा है । इस कथा को काव्य का रूप देने में महाकवि ने सब कहीं वाल्मीकि रामायण का अनुधावन नहीं किया। रघुवंश में कितने ही स्थल ऐसे हैं जहाँ की कथा वाल्मीकि रामायण से नहीं मेल खाती । यहाँ तक कि रामायण में दी हुई वंशावली से भी रघुवंश की राज-वंशावली नहीं मिलती । कुश के उत्तरवर्ती जिन बीस पच्चीस राजाओं का संक्षिप्त वर्णन रघुवंश में है उनका वृत्तान्त तो कालिदास को अवश्य ही और कहीं से मिला होगा। अध्यात्म-रामायण, अग्निपुराण, विष्णुपुराण और पद्मपुराण के पाताल-खण्ड, रामाश्वमेध आदि में भी रामचन्द्र और रघुवंशी राजाओं का वृत्तान्त है। विद्वानों की राय है कि ये पुराण कालिदास के समय में भी, किसी न किसी रूप में, अवश्य वर्तमान थे। अतएव, वाल्मीकि- रामायण के सिवा अन्यत्र से भी रघुवंश की कथा-सामग्री प्राप्त करने के लिए कालिदास को सुभीता अवश्य था।

रघुवंश में कालिदास ने जिन रघुवंशी राजाओं का चरित लिखा है उनके नाम ये हैं:-


१-दिलीप ८-निषध
२-रघु ९-नल
३-अज १०-नभ
४-दशरथ ११-पुण्डरीक
५-रामचन्द्र १२-क्षेमधन्वा
६-कुश १३-देवानीक
७-अतिथि १४-अहीनगु