पृष्ठ:रघुवंश.djvu/८६

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तीसरा सर्ग।

सकेगा । ठहरेगा तो दिशाओं का अन्त हो जाने पर ही ठहरेगा। अतएव,इन्द्र जिस तरह सारे स्वर्ग का उपभोग करता है उसी तरह मेरा पुत्र भी सारी पृथ्वी का उपभोग करेगा। यही जान कर उसने अन्यान्य भोग्य वस्तुओं का तिरस्कार कर के मिट्टी खाई । गर्भ से ही उसने अपने पुत्र में पृथ्वी के उपभोग की रुचि उत्पन्न करने का यत्न आरम्भ कर दिया।

राजा अपनी रानी सुदक्षिणा को यद्यपि बहुत चाहता था तथापि सङ्कोच और नारी-जन सुलभ लज्जा के कारण वह उससे यह न कहती थी कि अमुक अमुक वस्तु की मुझे चाह है। इस कारण उत्तर-कोशल का अधीश्वर, दिलीप, बार बार अपनी रानी की सखियों से प्रादर-पूर्वक पूछता था कि मागधी सुदक्षिणा का मन किन किन चीज़ों पर जाता है।

गर्भवती स्त्रियों को जो अनेक प्रकार की चीज़ों की चाह होती है वह उनके लिए सुखदायक नहीं होती। उससे वे बहुत पीड़ित होती हैं । इस व्यथाजनक दशा को प्राप्त होकर सुदक्षिणा ने जो कुछ चाहा वहीं उसके पास लाकर उपस्थित कर दिया गया। क्योंकि, संसार में ऐसी कोई चीज़ ही न थी जो उस चढ़ी हुई प्रत्यञ्चा वाले धनुषधारी राजा के लिए अलभ्य होती । रानी की इच्छित वस्तु यदि स्वर्ग में होती तो उसे भी वहाँ से लाने की शक्ति राजा में थी।

धीरे धीरे रानी की दोहद-सम्बन्धिनी व्यथा जाती रही । तरह तरह की चीज़ों के लिए उसका मन चलना बन्द हो गया। उसकी कृशता भी कम हो गई; शरीर के अवयव पहले की तरह पुष्ट हो गये । पुराने पत्ते गिर जाने के अनन्तर, नवीन और मनोहर कोंपल पाने वाली लता के समान वह, उस समय, बहुत ही शोभायमान हुई । कुछ दिन और बीत जाने पर, गर्भ के वृद्धिसूचक लक्षण भी उसमें दिखाई देने लगे । उस समय राजा को अन्तःसत्वा,अर्थात् कोख में गर्भ धारण किये हुए, रानी ऐसी मालूम हुई जैसी कि अपने उदर में धनराशि रखने वाली समुद्रवसना पृथ्वी मालूम होती है, काथवा अपने भीतर छिपी हुई आग रखने वाली शमी मालूम होती है, अथवा अपने अभ्यन्तर में अदृश्य जल रखने वाली सरस्वती नदी मालुम होती है। लक्षणों से गर्भस्थ शिशु को बड़ा ही

  • शमी - छीकुर का वृक्ष ।