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पृष्ठ:रघुवंश (अनुवाद).djvu/११२

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रघुवंश।

गया था। बड़े बड़े पर्वतों के शिखरों पर, दुस्तर महासागर के भीतर, यहाँ तक कि आकाश तक में भी—वायु से सहायता पाये हुए मेघ की गति के समान—उसके रथ की गति थी। कोई जगह ऐसी न थी जहाँ उसका रथ न जा सकता हो।

राजा रघु ने कुवेर को एक साधारण माण्डलिक राजा समझ कर, अपने पराक्रम से उसे परास्त करने का निश्चय किया। अतएव उस महा शूर-वीर और गम्भीर राजा ने, सायङ्काल, अपने रथ को अनेक प्रकार के शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित किया, और, प्रातःकाल, उठ कर प्रस्थान करने के इरादे से रात को उसी के भीतर शयन भी किया। परन्तु प्रभात होते ही उसके कोशागार के सन्तरी दौड़े हुए उसके पास आये। उन्होंने आकर निवेदन किया कि, महाराज, एक बड़े ही आश्चर्य्य की बात हुई है। आपके खज़ाने में रात को आकाश से सोने की बेहद वृष्टि हुई है। यह समाचार पा कर राजा समझ गया कि देदीप्यमान सुवर्ण-राशि की यह वृष्टि धनाधिप कुवेर ही की कृपा का फल है। उसी ने यह सोना आसमान से बरसाया है। अतएव, अब उस पर चढ़ाई करने की ज़रूरत नहीं। इन्द्र के वज्राघात से कट कर ज़मीन पर गिरे हुए सुमेरु पर्वत के शिखर के समान, आकाश से गिरा हुआ, सुवर्ण का वह सारा का सारा ढेर, उसने कौत्स को दे डाला। अब तमाशा देखिए। कौत्स तो इधर यह कहने लगा कि जितना द्रव्य मुझे गुरु-दक्षिणा में देना है उतना ही चाहिए, उससे अधिक मैं लूँगा ही नहीं। उधर राजा यह आग्रह करने लगा कि नहीं, आपको अधिक लेना ही पड़ेगा। जितना सोना मैं देता हूँ उतना सभी आपको लेना होगा। यह दशा देख कर अयोध्या-वासी जन दोनों को धन्य-धन्य कहने लगे। मतलब से अधिक द्रव्य न लेने की इच्छा प्रकट करने वाले कौत्स की जितनी प्रशंसा उन्होंने की, उतनी ही प्रशंसा उन्होंने माँगे हुए धन की अपेक्षा अधिक देने का आग्रह करने वाले रघु की भी की।

इसके अनन्तर राजा रघु ने उस सुवर्ण-राशि को, कौत्स के गुरु वरतन्तु के पास भेजने के लिए, सैकड़ों ऊँटों और ख़च्चरों पर लदवाया। फिर, कौत्स के बिदा होते समय, अपने शरीर के ऊपरी भाग को झुका कर और विनयपूर्वक दोनों हाथ जोड़ कर, वह उसके सामने खड़ा हुआ। उस समय राजा के अलाकिक औदार्य्य से अत्यन्त सन्तुष्ट हो कर कौत्स ने उसकी पीठ ठोंकी और इस प्रकार उस से कहा:—

"हे राजा! न्याय-पूर्वक सम्पदाओं का सम्पादन, वर्द्धन, पालन और फिर उनका सत्पात्रों को दान—यह चार प्रकार का राज-कर्तव्य है। इन चारों कर्तव्यों के पालन में सदा-सर्वदा तत्पर रहने वाले राजा के सारे