सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:रघुवंश (अनुवाद).djvu/१४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
९०
रघुवंश।

ध्वजाओं और पताकों के कारण सड़क पर सर्वत्र छाया थी। धूप का कहीं नामो-निशान भी न था। अज ऐसे सजे हुए मार्ग से, वहाँ का दृश्य देखते देखते, नगर के समीप आ पहुँचा। अज के आगमन की सूचना पाते ही नगर की सुन्दरी स्त्रियाँ अपने अपने मकानों की, सोने की जाली लगी हुई, खिड़कियों में जमा होने लगीं। अज को देखने के चाव से वे इतनी उत्कण्ठित हो उठीं कि उन्होंने घर के सारे काम छोड़ दिये। जो जिस काम को कर रही थी उसे वह वैसा ही छोड़ कर, अज को देखने के लिए, खिड़की के पास दौड़ आई।

एक स्त्री अपने बाल सँवार रही थी। वह वैसी ही खुली अलकें लेकर उठ दौड़ी। इससे उनमें गुँथे हुए फूल ज़मीन पर टपकते चले गये। परन्तु इसकी उसे ख़बर भी न हुई। एक हाथ से अपनी बेनी पकड़े हुए वह वैसी ही चली गई। जब तक खिड़की के पास नहीं पहुँची तब तक उसने अपने खुले हुए बाल नहीं सँभाले। जब बालों पर हाथ ही लगाया था तब बाँधने में कितनी देरी लगती। परन्तु उसे एक पल की भी देरी सहन न हुई।

एक और स्त्री, उस समय, अपने पैरों पर महावर लगवा रही थी। उसका दाहना पैर नाइन के हाथ में था। उस पर आधा लगाया हुआ गीला महावर चुहचुहा रहा था। परन्तु इस बात की उसने कुछ भी परवा न की। पैर को उसने नाइन के हाथ से खींच लिया, और, अपनी लीला-ललाम मन्द-गति छोड़ कर, दौड़ती हुई खिड़की की तरफ़ भागी। अतएव जहाँ पर वह बैठी थी वहाँ से खिड़की तक महावर के बूँद बराबर टपकते चले गये और उसके पैर के लाल चिह्न बनते चले गये।

एक और स्त्री, उस समय, सलाई से काजल लगा रही थी। दाहनी आँख में तो वह सलाई फेर चुकी थी। पर बाईं में काजल लगाने के पहले ही अज के आने की उसे ख़बर मिली। इससे उसमें काजल लगाये बिना ही, सलाई को हाथ में लिये हुए ही, वह खिड़की के पास दौड़ गई।

एक और स्त्री का हाल सुनिए। वह बेतरह घबरा कर खिड़की की तरफ़ टकटकी लगाये दौड़ी। जल्दी में, चलते समय, उसकी साड़ी की गाँठ खुल गई। परन्तु उसे उसने बाँधा तक नहीं। योंही उसे हाथ से थामे हुए वह खिड़की के पास खड़ी रह गई। उस समय उसके उस हाथ के आभूषणों की आभा उसकी नाभि के भीतर चली जाने से अपूर्व शोभा हुई।

एक स्त्री अपनी करधनी के दाने पोह रही थी। वह काम आधा भी न हो चुका था कि वह जल्दी से उठ खड़ी हुई और उलटे सीधे डग डालते अज को देखने के लिए दौड़ी। इससे करधनी के दाने ज़मीन पर गिरते