पृष्ठ:रघुवंश (अनुवाद).djvu/२०

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भूमिका।

भूमिका। आपने अपने मत को पुष्ट करने वाली समझा है। आपकी सम्मति है कि रघु का दिग्विजय काल्पनिक है। यथार्थ में रघु-सम्बन्धिनी सारी बातें यशोधा विक्रमादित्य से ही सम्बन्ध रखती हैं । रघुवंश के :-

(१) प्रतापस्तस्य भानोश्व युगपद् व्यानशे दिशः ।

(२) ततः प्रतस्थे कौवेरी भास्वानिव रघुदि शम् ॥

(३) सहस्रगुणमुत्सृष्टुमादत्ते हि रसं रविः ।

(४) मत्तेभरदनात्कीर्ण व्यक्तविक्रमलक्षणम् ॥

इत्यादि और भी कितने ही श्लोकों में जो रवि,' 'भानु' और 'भास्वान्' आदि शब्द आये हैं उनसे आपने विक्रमादित्य के 'आदित्य' का अर्थ लिया है और जहाँ 'विक्रम' और 'प्रताप' आदि शब्द आये हैं वहाँ उनसे 'विक्रम' का। इस तरह आपने सिद्ध किया है कि यशोधा विक्रमादित्य ही को लक्ष्य करके कालिदास ने इन श्लिष्ट श्लोकों की रचना की है । अतएव वे उसी के समय में थे। उस ज़माने का इतिहास और कालिदास के ग्रन्थों की अन्तर्वतों विशेषतायें इस मत को पुष्ट करती हैं। यही चैटर्जी महाशय की गवेषणा का सारांश है । इन विद्वानों की राय में विक्रमादित्य कोई नाम- विशेष नहीं, वह एक उपाधिमात्र थी।

अश्वघोष के बुद्धचरित और कालिदास के काव्यों में जो समानता पाई जाती है उसके विषय में चैटर्जी महाशय का मत है कि दोनों कवियों के विचार लड़ गये हैं । अश्वघाप ने कालिदास के काव्यों को देखने के अनन्तर अपना ग्रन्थ नहीं बनाया। दो कवियों के विचारों का लड़ जाना सम्भव है। पर क्या यह भी सम्भव है कि एक के काव्य के पद के पद, यहाँ तक कि प्रायः श्लोकाद्ध के श्लोकाद्ध तद्वत् दूसरे के दिमाग से निकल पड़ें? अस्तु, इन बातों का निर्णय विद्वान् ही कर सकते हैं। हम तो यहाँ उनकी राय मात्र लिखे देते हैं। ____ अच्छा यह तो सब हुआ । पर एक बात हमारी समझ में नहीं आई। यदि कालिदास को चन्द्रगुप्त, कुमारगुप्त, समुद्रगुप्त, स्कन्दगुप्त या पार किसी गुप्तनरेश किंवा यशोधर्मा का कीर्तिगान अभीष्ट था तो उन्होंने साफ़ साफ़ वैसा क्यों न किया ? क्यों न एक अलग ग्रन्थ में उनकी स्तुति की ? अथवा क्यों न उनका चरित या वंशवर्णन स्पष्ट शब्दों में किया ? गुप्त, स्कन्द, कुमार, समुद्र, चन्द्रमा, विक्रम और प्रताप आदि शब्दों का प्रयोग करके छिपे छिपे क्यों उन्होंने गुप्त-वंश का वर्णन किया ? इस विषय में बहुत कुछ कहने को जगह है।

जैसा ऊपर, एक जगह, लिखा जा चुका है, पुरातत्त्व के अधिकांश विद्वानों का मत है कि ईसा के ५७ वर्ष पूर्व भारत में विक्रमादित्य नाम का कोई राजा ही न था। उसके नाम से जो संवत् प्रचलित है वह पहले