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रघुवंश।

अँजुली बाँधे पेड़ खड़े हुए हैं, आश्रम के मृग, उनके दर्शनों की उत्कण्ठा से, मुँह ऊपर उठाये हुए राह देख रहे हैं। वहाँ पहुँचने पर ऋषि ने यज्ञ की दीक्षा ली और उसे विघ्नों से बचाने का काम राम-लक्ष्मण को सौंप दिया। इस पर वे अपने अपने धन्वा पर बाण रख कर, बारी बारी से, यज्ञशाला की रखवाली करने लगे। उन दोनों राजकुमारों ने अपने बाणों के द्वारा मुनि को इस तरह विघ्नों से बचाया, जिस तरह कि सूर्य्य और चन्द्रमा, बारी बारी से, अपनी किरणों के द्वारा संसार को अन्धकार से बचाते हैं।

यज्ञ होही रहा था कि आसमान से रक्त-वृष्टि होने लगी। दुपहरिया के फूल के बराबर बड़ी बड़ी रुधिर की बूँदों से वेदी दूषित हो गई। यह दशा देख ऋत्विजों को बड़ा आश्चर्य्य हुआ। उन्होंने खैर की लकड़ी के चम्मच रख दिये और यज्ञ का काम बन्द कर दिया। रामचन्द्र ने जान लिया कि विघ्नकर्त्ता राक्षस आ पहुँचे। इसलिए उन्होंने तरकस से तीर निकाल कर जो ऊपर आकाश की ओर मुँह उठाया तो देखा कि राक्षसों की सेना चली आ रही है और गीधों के पंखों की वायु से उसकी पताकायें फहरा रही हैं। राक्षसों की सेना में दोही राक्षस प्रधान थे। उन्हीं को रामचन्द्र ने अपने बाँ का निशाना बनाया; औरों पर प्रहार करने की उन्होंने आवश्यकता न समझी। बड़े बड़े विषधर सर्पों पर पराक्रम प्रकट करनेवाला गरुड़ क्या कभी छोटे छोटे सपेलों या पनिहाँ-साँपों पर भी आक्रमण करता है? कभी नहीं। उन्हें वह अपनी बराबरी का समझता ही नहीं। शस्त्रास्त्रविद्या में रामचन्द्र बड़े ही निपुण थे। उन्होंने महा-वेगगामी पवनास्त्र को धन्वा पर चढ़ा कर इस ज़ोर से छोड़ा कि ताड़का का मारीच नामक पर्व्वताकार पुत्र, पीले पत्ते की तरह, धड़ाम से ज़मीन पर गिर गया। यह देख कर सुबाहु नामक दूसरे राक्षस ने बड़ा मायाजाल फैलाया। आकाश में वह कभी इधर कभी उधर दौड़ता फिरा। परन्तु बाण-विद्या-विशारद रामचन्द्र ने उसका पीछा न छोड़ा। छुरे के समान पैने बाण से उसके शरीर की बोटी बोटी काट कर उसे उन्होंने, आश्रम के बाहर, मांसभोजी पक्षियों को बाँट दिया।

यशसम्बन्धी विन्न को राम-लक्ष्मण ने, इस तरह, शीघ्र ही दूर कर दिया। उनका युद्ध-कौशल और पराक्रम देख कर ऋत्विजों ने उनकी बड़ी बड़ाई की और मौन धारण किये हुए कुलपति विश्वामित्र का यज्ञ-कार्य्य उन्होंने विधि-पूर्व्वक निबटाया।

यज्ञ के अन्त में अवभृथ नामक स्नान करके विश्वामित्र ने यज्ञ-क्रिया से छट्टी पाई। उस समय राम-लक्ष्मण ने उन्हें झुक कर सादर प्रणाम किया।