पृष्ठ:रघुवंश (अनुवाद).djvu/२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१३
कालिदास का समय


समय ६८ ईसवी निश्चित किया है। इस हाल ने गाथा सप्तशती नाम की एक पुस्तक प्राचीन महाराष्ट्री भाषा में लिखी है। उसंके पैंसठवें पद्य का संस्कृतरूपान्तर इस प्रकार है :-

संवाहनसुखरसतोषितेन ददता तव करे लक्षम् ।

चरणेन विक्रमादित्यचरितमनुशिक्षितं तस्याः ॥

इस पद्य में विक्रमादित्य की उदारता का वर्णन है-उसके द्वारा एक लाख रुपये दिये जाने का उल्लेख है । इससे इस बात का पूरा प्रमाण मिलता है कि हाल-नरेश के पहले विक्रमादित्य नाम का दानशील राजा कोई ज़रूर था। अब इस बात का विचार करना है कि इस राजा ने शकों का पराभव किया था या नहीं ? उसका शकारि होना यथार्थ है या अयथार्थ ?

विन्सेंट स्मिथ साहब ने अपने प्राचीन भारतवर्ष के इतिहास में लिखा है कि शक जाति के म्लेच्छों ने ईसा के कोई १५० वर्ष पहले उत्तर-पश्चि- माञ्चल से इस देश में प्रवेश किया। उनकी दो शाखायें हो गई। एक शाखा के शकों ने तक्षशिला और मथुरा में अपना अधिकार जमाया और क्षत्रप नाम से प्रसिद्ध हुए । इनके सिक्कों से इनका पता ईसा के १०० वर्ष पहले तक चलता है। उसके पीछे उनके अस्तित्व का कहीं पता नहीं लगता। दूसरी शाखावालो ने ईसा की पहली शताब्दी में काठियावाड़ को अपने अधिकार में किया। धीरे धीरे इन लोगों ने उज्जेन को भी अपने अधीन कर लिया। इन्हें गुप्तवंशी राजाओं ने हरा कर उत्तर की ओर भगा दिया। अच्छा, तो इनके पराभवकर्ता तो गुप्त हुए। पहली शाखा के शकों का विनाश किसने साधन किया ? क्या बिना किसी के निकाले ही वे इस देश से चले गये ? अपना राज्य-अपना अधिकार-क्या कोई यही छोड देता है ? उनका पता पीछे के ऐतिहासिक लेखों से चलता क्यों नहीं? क्या इसके सिवा इसका और कोई उत्तर हो सकता है कि ईसा के ५७ वर्ष पहले विक्रमादित्यही ने उन्हें नष्ट-विनष्ट करके इस देश से निकाल दिया ? इसी विजय के कारण उसको शकारि उपाधि मिली और संवत् भी इसी घटना की याद में उसने चलाया । मुल्तान के पास कोरूर वाला युद्ध इन्हीं तक्षशिला और मथुरा के शकों और विक्रमादित्य के मध्य हुआ था। इसके सिवा इसका अब और क्या प्रमाण चाहिए ?

इस पर भी शायद कोई यह कहे कि यह सब सही है । पर कोई पुराना शिलालेख लाओ, कोई पुराना सिक्का लाओ, कोई पुराना ताम्रपत्र लामो जिसमें विक्रम-संवत् का उल्लेख हो। तब हम आपकी बात मानेंगे, अन्यथा नहीं। खुशी की बात है कि इस तरह का एक प्राचीन लेख भी मिला है। यह पेशावर के पास तख्तेबाही नामक स्थान में प्राप्त हुआ है । इसलिए उसी के नाम से यह प्रसिद्ध है। यह उत्कीर्ण लेख पार्थियन राजा गुड़फर्स