पृष्ठ:रघुवंश (अनुवाद).djvu/२४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१९१
चौदहवाँ सर्ग।

ख़ूबही सत्कार किया। उनके मन में भी जिस वस्तु की इच्छा उत्पन्न हुई वह तुरन्तही उन्हें प्राप्त हो गई। माँगने की उन्हें ज़रूरतही न पड़ी। उनके मन तक की बात ताड़ कर, रामचन्द्र के सेवकों ने, तत्कालही, उसकी पूर्त्ति कर दी। मुँह से किसी को कुछ कहने की उन्होंने नौबतही न आने दी। रामचन्द्रजी का ऐसा अच्छा प्रबन्ध और उनके नौकरों की इतनी दक्षता देख कर विभीषण आदि को बड़ाही आश्चर्य्य हुआ।

रामचन्द्रजी से मिलने और उनका अभिनन्दन करने के लिए अगस्त्य आदि कितनेहीं दिव्य ऋषि और मुनि भी अयोध्या आये। रामचन्द्र ने उन सबका अच्छा आदर-सत्कार किया। उन्होंने रामचन्द्र के हाथ से मारे गये उनके शत्रु रावण का वृत्तान्त, जन्म से आरम्भ करके मृत्यु-पर्य्यन्त, रामचन्द्र को सुनाया। इस वृत्तान्त से रामचन्द्र के पराक्रम का और भी अधिक गौरव सूचित हुआ। रामचन्द्र की स्तुति और प्रशंसा करके वे लोग अपने अपने स्थान को लौट गये।

राक्षसों और बन्दरों के स्वामियों को अयोध्या आये पन्द्रह दिन हो गये। परन्तु उन्हें रामचन्द्र ने इतने सुख से रक्खा कि उन्हें मालूम ही न हुआ कि इतने दिन कैसे बीत गये। उनका एक एक दिन एक एक घंटे की तरह कट गया। उनको सब तरह सन्तुष्ट करके रामचन्द्र ने उन्हें घर जाने की आज्ञा दी। उस समय सीताजी ने स्वयं अपने हाथ से बहुमूल्य भेंटें देकर उन्हें बिदा किया।

जिस पुष्पक विमान पर बैठ कर रामचन्द्रजी लङ्का से आये थे वह कुबेर का था। रावण उसे कुबेर से छीन लाया था। अतएव रावण के मारे जाने पर वह रामचन्द्र का हो गया था। अथवा यह कहना चाहिए कि रावण के प्राणों के साथ उसे भी रामचन्द्र ने ले लिया था। वह विमान क्या था आकाश का फूल था। आकाश में वह फूल के सदृश शोभा पाता था। रामचन्द्र ने उससे कहा—"जाव, तुम फिर कुबेर की सवारी का काम दो। जिस समय मैं तुम्हारी याद करूँ आ जाना"।

इस प्रकार, अपने पिता की आज्ञा से चौदह वर्ष वनवास करने के अनन्तर, रामचन्द्रजी को अयोध्या का राज्य प्राप्त हुआ। राजा होने पर जिस तरह उन्होंने धर्म्म, अर्थ और काम के साथ, पक्षपात छोड़ कर, एक सा व्यवहार किया उसी तरह उन्होंने अपने तीनों छोटे भाइयों के साथ भी व्यवहार किया। सब को उन्होंने तुल्य समझा। अपने व्यवहार में उन्होंने ज़रा भी विषमता नहीं आने दी। माताओं के साथ भी उन्होंने एकही सा व्यवहार किया। उनकी प्रीति सब पर समान होने के कारण किसी के