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पृष्ठ:रघुवंश (अनुवाद).djvu/३०४

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रघुवंश।


हिरण्यनाभ बड़ा नामी राजा हुआ। उत्तर-कोशल के सूर्य्यवंशी राजाओं का वह भूषण समझा गया। उसने कौशल्य नामक पौरस पुत्र पाया, जो दूसरे चन्द्रमा के समान—आँखों को आनन्द देनेवाला हुआ। महायशस्वी कौशल्य की कीर्त्ति-कौमुदी का प्रकाश ब्रह्मा की सभा तक पहुँचा। उसके महाब्रह्मज्ञानी ब्रह्मिष्ठ नामक पुत्र हुआ। उसी को अपना राज्य देकर राजा कौशल्य ब्रह्मगति को प्राप्त हो गया—वह मुक्त हो गया।

ब्रह्मिष्ठ अपने वंश में शिरोमणि हुआ। उसने बड़ी ही योग्यता से प्रजा का पालन और पृथ्वी का शासन किया। उसके शासन और प्रजा-पालन में कभी किसी तरह का विघ्न न हुआ। उसके सुशासन के चिह्न पृथ्वी पर सर्वत्र व्याप्त हो गये। ऐसे प्रजापालक राजा को पाकर, आँखों से आनन्द के आँसू बहाती हुई प्रजा ने, चिरकाल तक, सुख और सन्तोष का उपभोग किया।

राजा ब्रह्मिष्ठ के पुत्र नाम का एक नामी पुत्र हुआ। उसने विष्णु के समान सुन्दर रूप पाया। उस कमल-पत्र-समान सुन्दर नेत्रवाले पुत्र ने अपने पिता की अत्यधिक सेवा करके अपनी आत्मा को कृतार्थ कर दिया। इस कारण उसका पिता, ब्रह्मिष्ट, पुत्रवानों में सब से अधिक भाग्यशाली समझा गया। बह्मिष्ठ ने जब देखा कि अब मेरे वंश के डूबने का डर नहीं तब उसने विषयोपभोग की तृष्णा छोड़ दी। सारे भोगविलासों से अपने चित्त को हटा कर वह पुष्कर नामक तीर्थ को चला गया। वहाँ स्नान करके वह देवत्व-पद को प्राप्त हो गया। उसने इस लोक में इतने पुण्य-कार्य्य किये थे कि यह बात पहलेही से मालूम सी हो गई थी कि मुक्त होने पर वह इन्द्र का अवश्य ही साथी हो जायगा। वही हुआ। इन्द्र का मित्र बन कर वह इन्द्रही के समान ऐश्वर्य्यसुख भोगने लगा।

राजा पुत्र की रानी ने, पूस की पूर्णमासी के दिन, पुष्य नाम का पुत्र प्रसव किया। उसकी कान्ति पद्म-राग-मणि की कान्ति से भी अधिक उज्ज्वल हुई। दूसरे पुष्य नक्षत्र के समान उस राजा के उदित होने पर, उसकी प्रजा को सब तरह की पुष्टि और तुष्टि प्राप्त हुई। पुष्य बड़ाही उदार हृदय राजा हुआ। जब उसकी रानी के पुत्र हुआ तब उसने पृथ्वी का भार अपने पुत्रही को दे दिया। बात यह हुई कि यह राजा जन्म-मरण से बहुत डर गया था। वह न चाहता था कि फिर उसका जन्म हो। इस लिए ब्रह्मवेत्ता जैमिनि का वह शिष्य हो गया। जैमिनिजी विख्यात योगी थे। उनसे योग-विद्या का अध्ययन करके, अन्तकाल आने पर, राजा पुष्य ने समाधि द्वारा शरीर छोड़ दिया। उसकी इच्छा भी सफल हो गई। वह मुक्त हो गया और फिर कभी उसका जन्म न हुआ।