पृष्ठ:रघुवंश (अनुवाद).djvu/३६

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भूमिका।

है; प्रेम से जीवन सार्थक हो सकता है। मनुष्य-प्रेम से ईश्वर-सम्बन्धी प्रेम की भी उत्पत्ति हो सकती है। अतएव कालिदास का मेघदूत शृङ्गार और करुण-रस से परिप्लुत है तो क्या हुआ, वह उच्च-प्रेम का सजीव उदाहरण है।

विक्रमोर्व्वशीय और मालविकाग्निमित्र।

विक्रमोर्व्वशीय में राजा पुरूरवा पार उर्व्वशी की और मालविकाग्निमित्र में राजा अग्निमित्र और मालविका की कथा है। अभिनय की दृष्टि से और कविता की भी दृष्टि से ये दोनों ही नाटक अच्छे हैं। पर इनमें समाज के हित की कोई बात नहीं। केवल प्रणय और प्रणयोन्माद वर्णन का ही इनमें प्राबल्य है। कालिदास ने शायद जान बूझ कर इनमें आदर्श चरित्रों का चित्रण नहीं किया। उन्होंने शायद समाज की तात्कालिक अवस्था का चित्र खींचने के लिए ही इन नाटकों की रचना की है। अतएव समाज की जैसी दशा थी वैसा चित्र उन्होंने खींच दिया और दिखा दिया कि उस समय के प्रणय का यह हाल था।

अभिज्ञान-शाकुन्तल।

कालिदास का यह नाटक उनके पूर्वोक्त दोनों नाटक से अच्छा है। ऐसा अच्छा नाटक शायद ही और किसी भाषा में हो। कलकत्ते के संस्कृत कालेज के अध्यापक श्रीयुत राजेन्द्रनाथ-देव शर्म्मा विद्याभूषण ने इस नाटक के विषय में जो सम्मति दी है उसका सारांश सुन लीजिए:—

अभिज्ञान-शाकुन्तल कालिदास की विश्वतोमुखी प्रतिभा, ब्रह्माण्डव्यापिनी कल्पना और सर्वातिशायिनी रचना की सर्वोत्तम कसौटी है। विक्रमोर्वशीय और मालविकाग्निमित्र में कवि ने जिन दिव्य दृश्यों और दिव्य मूर्तियों का अङ्कण किया है वे सब तो शाकुन्तल में हैं ही; परन्तु उसमें ऐसी और भी अनेक मूर्तियाँ और अनेक चीज़ें हैं जिनका मनही मन केवल अनुभव किया जा सकता है, दूसरे को उनका अनुभव नहीं कराया जा सकता। वे केवल आत्मसंवेद्य हैं; भाषा की सहायता से वे दूसरे पर प्रकट नहीं की जा सकतीं। इसी से अभिज्ञान-शाकुन्तल कविसृष्टि का चरम उत्कर्ष है। सहृदय जनों ने यथार्थ ही कहा है-"कालिदासस्य सर्वस्वमभिज्ञान-शकुन्तलम्'। अभिज्ञान-शाकुन्तल कालिदास का सर्वस्व है; उनकी अपार्थिव कल्पनारूपिणी उद्यान-वाटिका की अमृतमयी पारिजात-लता है। धर्म और प्रेम, इन दोनों के सम्मेलन से जगत में