पृष्ठ:रघुवंश (अनुवाद).djvu/५०

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रघुवंश।


मन्द-मति होकर भी बड़े बड़े कवियों को मिलने वाली कीति पाने की मैं इच्छा कर रहा हूँ। फिर भला क्यों न मेरा उपहास हो? ऊँचा-पूरा मनुष्य ही जिस फल को हाथ से तोड़ सकता है, लोभ के वशीभूत होकर उसी को तोड़ने के लिए यदि बावन अङ्गुल का एक बौना आदमी अपना हाथ ऊपर को उठावे तो देखने वाले अवश्य ही उसकी हँसी करेंगे। मेरा भी हाल ठीक ऐसे ही बौने का जैसा है। तथापि एक बात अवश्य है। देखिए, धागा बहुत ही पतला और नाज़ुक होता है और मणि महा-कठिन। तथापि हीरे की सुई के द्वारा मणियों में छेद किये जाने पर उनके भीतर भी धागे का सहज ही में प्रवेश हो जाता है। इसी तरह वाल्मीकि आदि प्राचीन कवियों ने बड़े बड़े ग्रन्थों में जो इस वंश का पहले ही से वर्णन कर रक्खा है वह इस वंश-वर्णन में मुझे बहुत काम देगा। उसकी बदौलत मैं इसमें उसी तरह प्रवेश प्राप्त कर सकूँगा जिस तरह कि हीरे की सुई से छेदे गये रत्नों में धागे को प्रवेश प्राप्त हो जाता है। मुझे विश्वास है कि प्राचीन कवियों की रचना की सहायता से मैं भी, किसी न किसी तरह, इस वंश का वर्णन कर ले जाऊँगा।

इसमें कोई सन्देह नहीं कि मेरी वाणी में बहुत ही थोड़ी शक्ति है। तथापि प्राचीन कवियों के ग्रन्थों की सहायता से रघुवंशियों के वंश-वर्णन में जो मैं प्रवृत्त हुआ हूँ उसका कारण इस वंश के राजाओं के गुण ही हैं। यदि उनके गुणों को सुन कर मैं मुग्ध न हो जाता तो मैं ऐसा अनुचित साहस करने के लिए कभी तैयार भी न होता। रघुवंशियों में अनेक गुण हैं। यथा:—

रघु-कुल में उत्पन्न हुए पुरुषों के गर्भाधान आदि सब संस्कार उचित समय में होने के कारण वे जन्म से ही शुद्ध हैं। जिस काम का वे आरम्भ करते हैं उसे पूरा किये बिना नहीं छोड़ते। समुद्र के तटों तक सारी पृथ्वी के वे स्वामी हैं। उनके रथों की गति का रोकने वाला त्रैलोक्य में कोई नहीं। स्वर्ग-लोक तक वे आनन्द-पूर्वक अपने रथों पर बैठे हुए जा सकते हैं। वे यथा-शास्त्र अग्नि की सेवा करते हैं; याचकों के मनोरथ पूर्ण करते हैं; अपराध के अनुसार अपराधियों को दण्ड देते हैं, समय का मूल्य जानते हैं; सत्पात्रों को दान करने ही के लिए धन का संग्रह करते हैं। कहीं मुँह से असत्य न निकल जाय, इसी डर से वे थोड़ा बोलते हैं। कीर्ति की प्राप्ति के लिए ही वे दिग्विजय और सन्तान की प्राप्ति के लिए ही वे गृहस्थाश्रम को स्वीकार करते हैं। बाल्यावस्था में ब्रह्मचर्य का पालन करके वे विद्याभ्यास करते हैं; युवावस्था प्राप्त होने पर विवाह करके विषयों का उपभोग करते है; वृद्धावस्था आने पर वन में जाकर वान-