पृष्ठ:रज़ीया बेगम.djvu/१४

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(पहिला
रजी़याबेगम।

नहीं होने पाता और नंगी तल्वारों को खैचे संतरी लोग बड़ी सावधानी से भीड़ चीरते और दंगा फ़साद नहीं होने देते हैं।

यह तो नगर का हाल हुआ, अब उधर आंख फेरिए, देखिए, आज राजप्रासाद ने कैसी अपूर्व श्रीधारण की है !!! आज असंख्य दीपमालिकाओं से शाही कोट जगमगा रहा है, प्रकाश इतना अधिक है कि वहां पहुँच कर लोगों को दिन का भ्रम होता है और राजलक्ष्मी की अलौकिक प्रभा सामने क्रीड़ा करती हुई प्रत्यक्ष दिखलाइ देती है। आज शाही कोट के सभी सिंहद्वार सर्व साधारण के आने जाने और दर्बार के जलूस देखने के लिये खोल दिए गए हैं और नंगी तल्वारों को बैंचे, संतरी कत्तार बांधे खड़े, अपने अपने कामों पर मुस्तैद हैं । किले के बुर्जी पर तो चढ़ी हुई हैं और रह रह कर सुल्ताना रजीया बेगम के ताजपोशी की सूचना सर्वसाधारण को अपनी घोर गर्जना से दे रही हैं।

बड़े भारी आलीशान दालान में 'दर्बारे आम' सजा गया है, जिसकी सजावट देख यही जी में आता है कि इतनी दौलत या ज़र जवाहिरात कारूं के खजाने में भी होंगे या नहीं !!! हज़ारों सोने चांदी के और जड़ाऊ झाड़ लटक रहे हैं, जिनमें बिल्लौरी फ़ानूस और हांड़ियों में काफूरी बत्तियां जल रही हैं । बहुमूल्य कालीन का फर्श बिछा हुआ है, उस पर दर्बार के सिरे पर एक सोने के चबूतरे के ऊपर जड़ाऊ सिंहासन बिछा है और बादशाहों की तरह क़बा और ताज पहिन कर सुल्ताना रज़ीया बेगम उस तख़्त पर पुरुषोचित दर्प से बिराजमान है । उसके पीछे सुन्दरता की खान पांच सौ बांदियां नंगी तल्वारे लिये खड़ी, अपनी चमक दमक से लोगों की आंखों में चकाचौंधी डाल रही हैं और तख़्त के दोनों बगल सुल्ताना की दो सहेलियां ज़र्दोजी पोशाक पहिरे, जवाहि- रात से लकोदक, जड़ाऊ कुर्सियों पर नंगी तल्वारे लिये बैठी हैं। सिंहद्वार पर शहनाइयां बजरही हैं, बड़े बड़े राजकर्मचारी दर्बार में अपनी अपनी पदमर्यादा के अनुसार उचित स्थानों पर खड़े हैं और अमीर उमरा तथा सर्वसाधारण आआ कर शाही आदाब बजा लाते और सुल्ताना को मुबारकबाद देते हुए नज़र करते हैं।

सुल्ताना सभों का परिचय लेती है, सभों की मिज़ाजपुर्सी करती है, सभों की नज़र क़बूल करती है, सभों को अपने हाथ से