पृष्ठ:रज़ीया बेगम.djvu/६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
परिच्छेद)
६१
रङ्गमहल में हलाहल।

कोई छिपा हुआ तो नहीं है!"

इसका जवाब गुलशन कुछ दिया ही चाहती थी कि उसके मुहं की बात मुहं में ही रह गई और लताओं की झुरमुट में से यह आवाज़ आई,--

इस वक्त नई माशूका को छोड़कर उसके आशिक को अपने तई किसी दूसरी उल्झल में डालना क्या लाज़िम है?"

केवल इतना ही नहीं, बल्कि ऊपर लिखे हुए जुमले के ख़तम होते ही कहकहे की आवाज़ भी सुनाई दो; इसलिये उनदोनों आशिक माशूकों के डर, घबराहट और अचरज की सीमा न रही । अयूब ने धीरे से कहा,-

"यह आवाज़ तो किसी औरत की मालूम देती है!"

गुलशन,--(धीरे से ) "ठीक है, पर मुझे ऐसाभी मालूम होता है कि जिसने यह जुमला कहा है, उसने जान बूझ कर इसलिये अपने गले को दबाकर कहा है जिसमें आवाज़ पहिचानी न जाय।"

अयूब,--(धीरे धीरे) " यह तो आपने खूब ही बारीकी निकाली ! बाकई ऐसी ही बात है; खैर तो अब क्या किया जाय?"

गुलशन,--( आँखों में आँसू भर कर धीरे से) " या इलाही ! अब क्या होगा! अगर किसी बांदी ने यह हर्कत देखली हो और वह अगर इसकी ख़बर को बेगम साहिबा के कानों तक पहुंचाए तो क्या होगा?"

अयूब,-(घबरा कर ) " तो क्या होगा, प्यारी, गुलशन !"

गुलशन,-(कांपती हुई, धीरे धीरे ) "खुदा न करे कि यह ख़बर बेगम के कानों तक पहुंचे, वर न मेरे और आपके धड़ पर सर कायम न रहेगा।"

अयूब,-( धीरे से ) " इलाही ! तूही खैर कर; मगर, दिलरुवा, गुलशन ! यह क्या कोई ऐब की बात है, कि इस पर बेगम साहिबा इतनी नाराज़ होंगी कि हमलोगों के सर तक काट डालने पर आमादा हो जायंगी?"

गुलशन,-(धीरे) "खुदा करे, यह ख़बर हर्गिज़ उनके कानों तक न पहुंचे, वर न सर की खैर नहीं।"

निदान, उस समय उन दोनों का जी इतना घबरा गया था कि थोड़ी देर तक दोनों जमीन की ओर निहारते हुए चुपके खड़े रहे;