पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/११८

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करा भूप "ता नैंकुहु नहिँ संसय उर आनौ । होहि हमारे जोग काज सो बेगि बखानौ" ॥ का जोगि बैताल, जोगिनी, बज्र, रसायन । बहुरि पादुका, धातु-भेद, गुटिका औ आँजन ॥१९॥ सब के सिद्धि-विधान भली भाँतिनि हम जानत । विघ्न उपस्थित होत आनि पै नैकुं न मानत ॥ तिन्हें निवारौ तुम तो सिद्धि बेगि हम पाएँ । निकट सिद्धि-पाकर ह्याँ सौं तहँ जाइ जगावैं ॥२०॥ लहि उत्तर अनुकूल गया उत सुख सौं साधक । इत नृप बिघननि रोकि होन दीन्ह्यौँ नहिँ वाधक ॥ पुनि कछु समय बिताइ तहाँ जोगी सो आयो । अति आनंद सौं उमगि भूप कौ टेरि सुनाया ॥२१॥ "महाराज तव कृपा आज हम सब कछु पायौ । देखा महानिधान सिद्ध यह भयो सुहायौ ॥ जोगी जन जाके प्रभाव है अमर अमर लौँ । बिहरहिँ निपट निसंक जाइ गिरि मेरु सिखर लौँ ॥२२॥ लीजे आपहु है प्रसन्न हम सादर लाए"। कह्या भूप "बस क्षमा करहु हम दास पराए ॥ बिन स्वामी के कहैं कडू काहू सौँ लैवौ । जानि परत हमकौं जैसे करि कपट कमैबौ" ॥२३॥