पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/१२५

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यह सुनि औरै भए भाव सब भूप हृदय के । लगे हगान मैं फिरन रूप संसय अरु भय के ॥ चढ़ी ध्यान पै आनि पूर्व घटना सम है है। हिचकिचान से लगे कछुक सबकी दिसि ज्वै ज्चै ॥५४॥ एतहि मैं रोवत रोवत सो बिलखि पुकारी । "हाय आज पूरी कौसिक सब आस तिहारी" ॥ यह सुनि एकाएक भई धक सौं नृप छाती । भरी भराई मुरंग माहि लागी जनु बाती ॥५५॥ धीरज उड्या धधाइ धूम दुख की घन छायौ ।। भयौ महा अंधेर न हित अनहित दरसायौ ॥ बिविध गुनावन महा मर्म-वेधी जिय जागे । "हाय पुत्र ! हा रोहितास्व " कहि रोवन लागे ॥५६॥ "हाय भयो हो कहा हमैं यह जात न जान्यो । जो पत्नी अरु पुत्रहिँ अब लौ नाहिँ पिछान्यो । हाय पुत्र तुम कहा जनमि जग मैं सुख कीन्यौ कहा विलास कहा खेल्यौ अरु खायौ ॥५७।। हाय, हमारे काज कष्ट भोग्यौ तुम भारी। राजकुँवर है हाय भूख औ प्यास सहारी ॥ पातक ही हैं गयौं आज लौँ जो हम कीन्ह्यौ । नतरु पुत्र को सोच दुसह अति क्यों बिधि दीन्ह्यौ ॥५८॥ पायौ।