पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/१३६

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यौँ कहि पत्नी संग नृपहिँ नर-अंगनि धारे । रोहितास्व को साँपि राज्य सब धर्म सहारे ॥ निज बिमान बैठाइ बेगि बैकुंठ पधारे । भई पुष्पवर्षा सब जय जय सब्द उचारे ॥१०९॥