पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/१५६

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चिलकी चिक्कन चारु चीर चीनी जापानी। पाट पीठिवारी मरवमल कोमल कासानी॥ भोटी गुदमे गहब नवल नमदे मुलतानी । बगदादी कम्मल बनात सुंदर सुलतानी ॥९॥ भूषन दूषन रहित मुघरता सहित संवारे । रुचिर रजत सुठि स्वर्ण मंजु मुक्तामनि वारे ॥ साद सुथरे सुखद चारु चित्रित मनभाए । हीराकट कल कटक काम अभिराम बनाए ॥१२॥ ललित लखनऊ जयपुर मीना-मंडित सुंदर । खुले बंद नगजटित बिबिध काँटे कुंदन पर ॥ जिनकी जगमग ज्योति होति दारिद चखचाँधी। कबहुँ भूलि तेहिँ ओर तकत जो करि मति औंधी ॥१३॥ पद्मराग कुरुबिंद नीलगंधी मानिक बर। स्वच्छ स्निग्ध समगात वृत्त गरुवे किरनाकर ॥ ब्रह्म बदखसा औ तिब्बत महि के कल भूषन है जिनौँ अनुरक्त प्रीति परिपालित पूषन ॥९४॥ बसरा सिंघल द्वीप अदन मुक्ता मर्यादी। अमल सजल सित स्निग्ध वृत्त हरुवे आह्लादी॥ जलनिधि नाता मानि जानि निज किरननि बोरे । हिमकर कृपा कटाच्छ करत जिन निपट निहोरे ॥९५।।