पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/१६२

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नीके। बिबिध यान बहु रंग ढंग के सुघर सजीले । गाधी पखरी पीठि लगे लोने लचकीले॥ बने बंबई कलकत्ता कासी के जिन पर चलत न हलत अंग रस-रंगरली के ॥१२॥ टमटम फिटन पालगाड़ी लैंडो लैंडो सुखदाई। बिसद बैगनेट बर बहली रथ रुचि अनुयाई ॥ पानवेग अति मौन गौन मोटर मनभाए। कला कलित गौरंड देस के दिब्य बनाए ॥१२२॥ तामजान सुखपाल सुखद सुभ पिनस पालकी। बक्रतुंड चंडोल चारु बहुमोल नालकी॥ सज्जित सुघर कहार कंदला कलित कसीले । पदपाटव मैं निपुन सुखद-गति अति फुरतीले ॥१२३॥ गजसालनि मैं त्यौँ मतंग झूमत मतवारे । मकने मंजुल एकदंत सुभ दिव्य दंतारे॥ ऐरावत-कुल-कलस दिग्गजनि के के श्रमहारी। उन्नत-भाल बिसाल-काय बल-बिक्रम-धारी ॥१२४॥ सजल जलद बर बरन कलिंदहु के मदहारी। जिनके अंग अनूप रूप जग बिसमयकारी॥ कच्छप कैसे कलित-गंडमंडल मद-मंडित । जिन पर मधुकर निकर मंजु गुजत रस पंडित ॥१२५॥