पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/१६७

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संगलाचरण जासौँ जाति विषय-बिषाद की बिवाई बेगि चोप-चिकनाई चित चारु गहिबौ करें। कहै रतनाकर कबित्त-बर-व्यंजन मैं जासौँ स्वाद सौगुनी रुचिर रहिबा करै ॥ जासौं जोति जागति अनूप मन-मंदिर में जड़ता - विषम - तम - तोम दहिबा जयति जसोमति के लाडिले गुपाल, जन रावरी कृपा सौँ सो सनेह लहिबौ करै॥१॥ करें।