पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/१८७

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ऊया यह ज्ञान का बखान सब बाद हमैं सूधौ बाद छाँडि बकबादहि बढ़ावै कौन । कहै रतनाकर बिलाइ ब्रह्म-काय माहि आपने सौ आपुनपा आपुनो नसावै कौन ॥ काहू तो जनम मैं मिलेंगी स्यामसुंदर काँ याहू आस पानायाम-साँस मैं उड़ावै कौन । परि कै तिहारी ज्योति-ज्वाल की जगाजग मैं फेरि जग जाइबे की जुगति जरावै कौन ॥५२॥ वाही मुख मंजुल की चहति मरी. सदा हमकौं तिहारी ब्रह्म-ज्योति करिबो कहा। कहै रतनाकर सुधाकर-उपासिनि भानु की प्रभानि कौँ जुहारि जरिवी कहा ॥ भोगि रही विरचे बिरंचि के सँजोग सबै ताके सोग सारन कौँ जोग चरिबौ कहा। नब ब्रमचंद को चकोर चित चारु भयो विरह-चिंगारिनि सौ फेरि डरिबौ कहा ॥५३॥ उधौ जम-जातना की बात ना चलावौ नै अब दुख सुख को बिबेक करिबौ कहा। प्रेम-रतनाकर - गंभीर - परे मीननि कौं इहि भव-गोपद की भीति भरिबौ कहा ॥