पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/१९७

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सीता असगुन कौँ कटाई नाक एक बेरि सोई करि कूब राधिका पै फेरि फाटी है। कहै रतनाकर परेखा नाहिँ याकी नै ताकी तौ सदा की यह पाकी परिपाटी है ॥ सोच है यहै कै संग ताके रंगभौन माहि कौन धौं अनोखा ढंग रचत निराटी है। छाँटि देत कूबर कै आँटि देत डाँट कोऊ काटि देत खाट किधौं पाटि देत माटी है ॥७७॥ आए कंसराइ के पठाए वे प्रतच्छ तुम लागत अलच्छ कुबजा के पच्छवारे हौ। कहै रतनाकर वियोग लाइ लाई उन तुम जोग बात के बवंडर पसारे हौ ॥ कोऊ अबलानि पै न ढरिक ढरारे होत मधुपुरवारे सब एकै ढार ढारे हौ। लै गए अक्रूर क्रूर तन त छुड़ाइ हाय तें छुड़ावन पधारे हौ ॥७॥ ऊधी तुम मन कहै रतनाकर आए हौं पठाए वा छतीसे छलिया के इतै बीस बिसै ऊधौ बीरबावन कलाँच है। प्रपंच ना पसारौ गाढ़े बाड़े पै रहोगे साढ़े बाइस ही जाँच है ॥