पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/२११

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सीत-घाम-भेद खेद-सहित लखाने सबै भूले भाव भेदता-निषेधन-विधान के। कहै रतनाकर ताप ब्रजबालनि के काली-मुख-ज्वाल ना दवानल समान के ॥ पटक पराने ज्ञान-गठरी तहाँ ही हम थमत बन्यौ ना पास पहुंचि सिवान के। छाले परे पगनि अधर पर जाले परे कठिन कसाले परे लाले परे प्रान के ॥११२॥ ज्वालामुखी गिरि से गिरत द्रवे द्रव्य कैयौं बारिद पियौ है बारि बिष के सिवाने मैं । कहै रतनाकर कै काली दाँव लेन-काज फेन फुफकारे उहि गावँ दुख-साने मैं ॥ जीवन बियोगिनि को मेघ अँचयौ सो कियाँ उपच्या पच्यौ न उर ताप अधिकाने मैं। हरि-हरि जासौँ बरि-बरि सब बारी उठे जानें कौन बारि बरसत बरसाने मैं ॥११३॥ लैकै पन मूछम अमोल जो पठायौ आप ताको मोल तनक तुल्यौ न तहाँ साँठी ते । पुकारे ठौर-ठौर पर पौरि बृषभानु की हिरान्यौ मति नाठी तें ॥ कहै रतनाकर