पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/२१४

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मंगलाचरण जय बिधि-संचित-सुकृत-सार-सुख-सागर-संगिनि । जय हरि-पद-अरबिंद-मंजु-मकरंद-तरंगिनि ॥ जय सुर-सेवित-संभु-बिपुल-बल-बिक्रम-साका । जय भूपति-कुल-कलस-भगीरथ-पुन्य-पताका ॥ जय गंग सकल-कलि-मल-हरनि बिमल-बरनि बानी करौ । निज महि-अवतरन-चरित्र के भव्य भाव उर मैं भरौ ॥१॥