पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/२५०

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स्रम करि काटत बाट बेगि बिन मग विलंबाए । इय-रच्छा-हित सकट-ब्यूह अति बिकट बनाए । कीरति-मुकता-पुंज मंजु मग मैं बगरावत। आए अवध-समीप सकल सुर सुकृत मनावत ॥ ५ ॥ समाचार यह पाइ धाइ आए अगवानी। परिजन पुरजन स्वजन सचिव सज्जन सेनानी॥ प्रेम-वारि हग ढारि लग्यौ कोउ ललकि जुहारन । कोउ असीस सुभ देन सीस कोउ मनि-गन वारन ॥ ६॥ सगर-सुतनि का समाचार तब लौँ तह ब्याप्यो । सब मुख-कंजनि खिलत सोक-पाला परि छाप्यौ । सादर चले लिवाइ सुभासुभ भाय बिचारत । बिकचत सकुचत मधुर छार जल नैननि ढारत ॥ ७॥ नृप-नंदहिँ अभिनंदि धीर गंभीर धरावत। सांति-पाठ सुभ पढ़त सदासिव-संकर ध्यावत ॥ उर आनँद सौं सोक सोक सौं 'आनँद मारे। पहुँचे ज्यौँ त्यौँ आइ जज्ञ-मंडप के द्वारे ॥ ८ ॥ तह बसिष्ठ कुल-इष्ट सिष्ट द्विज-गन सँग लीने । मिले आनि सुख मानि पढ़त मंगल मुद-भीने ॥ अंसुमान परि पाय पाइ आसिष हरषायौ । पौरि धूरि धरि सीस जज्ञसाला मैं आयौ ॥९॥