पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/३

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अज्ञात होने के कारण छोड़ दिया गया है। रत्नाकर जी के यहाँ इधर-उधर बिखरी हुई जो सामग्री प्राप्त हो सकी, उसी के आधार पर यह फुटकर संग्रह प्रस्तुत किया गया है। संभव है कि इनके अतिरिक्त और भी बहुत से छंद आदि हों जो या तो लिखे न गये हों और या हमें। न मिले हों। जिन सज्जनों के पास ऐसे छंद आदि हों जो इस संग्रह में न आये हों, वे यदि कृपापूर्वक वे छंद आदि लिख भेजें तो इस संग्रह के आगामी संस्करण में उनका समुचित सदुपयोग किया जायगा। रत्नाकर जी की जो कृतियाँ इस संग्रह में संगृहीत हैं, इनके अतिरिक्त उनकी और दो बहुत बड़ी और सबसे अधिक महत्त्व की कृतियाँ हैं। इनमें से पहली कृति "बिहारी-रत्नाकर" है जो बिहारी-सतसई की सबसे बड़ी और सबसे उत्कृष्ट तथा बहुमूल्य टीका है। पर वह कृति इस संग्रह में नहीं ली गई है और इसका मुख्य कारण यही है कि वह टीका है-रत्नाकर जी की स्वतंत्र या मौलिक कृति नहीं। दूसरी और इससे भी बड़ी तथा चिरस्थायी कृति "सूरनुपधार है। रत्नाकर जी ने बहुत दिनों तक बहुत अधिक परिश्रम करके और अपने पास का बहुत सा धन व्यय करके सूर-सागर का संग्रह और संपादन किया था। वह कार्य आप पूरा नहीं कर सके थे और उसका केवल तीन चतुर्थांश करके ही स्वर्गवासी हो गये थे। जितना अंश आपने ठीक किया था, उसमें भी अभी कुछ काम बाकी था। इस संबंध में उन्होंने जो कुछ काम किया था और जो सामग्री आदि एकत्र की थी, वह सब उनके सुयोग्य पुत्र श्रीयुक्त राधाकृष्णदास जी ने काशी-नागरी-प्रचारिणी सभा को समर्पित कर दी और अब सभा उसे ठीक करके उसके प्रकाशन की व्यवस्था कर रही है। आशा है, बहुत शीघ्र इसका प्रकाशन आरंभ हो जायगा और "रत्नाकर” का यह सबसे बड़ा रत्न हिंदी संसार को अपने प्रकाश से चकित और विस्मित कर देगा। रत्नाकर जी के इस प्रथम वार्षिक श्राद्ध के अवसर पर उनके ४० वर्ष पुराने मित्र की यह श्रद्धांजलि उनकी स्वर्गीय आत्मा के सुख और शांति के लिए परम आदर और स्नेहपूर्वक समर्पित है। आशा है, इससे हिंदी-प्रेमियों का यथेष्ट मनोरंजन और उपकार होगा और अमर रत्नाकर को कीर्ति सदा स्थायी तथा अक्षुण्ण बनी रहेगी। एवमस्तु । काशी श्यामसुंदरदास १ जून १६३३