पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/३३४

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समता सुधारि औ विसमता विचारि नीके, ताहि उर धारि जो विसद ब्रज-टीको है। चारु चाँदनी को नीका नायक निहारि कही. चाँदनी का नीका कै हमारी चाँद नीका है ॥ ४॥ पाती लै चितौति चहुँ ओरनि निहोरनि सौं, आई बन बाल ज्याँ तरंग छवि-बारी की। कहै रतनाकर पिछानि पर पैठत ही, बिसद बताई कुंज मालती निवारी की। साँहैं लखि अधर दबाए मुसुकानि मंद, मोरति मदन-मन-मोहिनी बिहारी की। लोचन लचाइ रही सोचनि सकी सी चकि, मूरति सुरति करि पठवन हारी की ॥ ५ ॥ चंचल चारु सलोनी तिया इक, राधिका के ढिग आइ अजानी । दै कर कागद एक कह्यौ बस, रीझिवी मोल है याका सयानी ॥ चित्र ते दीठि चितेरिनि ओर, चितेरिनि तें पुनि चित्र पैनी । चित्र समेत चितेरिनि मोल लै, आपु चितेरिनि-हाथ विकानी ॥६॥ अाजु हौं गई ती नंदलाल बृषभानु-भौन, सुधि ना तहाँ की बुधि नैकुं बहरति है। कहै रतनाकर बिलोकि राधिका का रूप, सुखमा रती की ना रतीकु ठहरति है ॥