पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/३६९

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बीस बिसैं मानती कहानी काम जारन की, आनि बिहीनि सौं न अब अरुझात्या जी। कहै रतनाकर जुन्हाई ज्वाल होती सही, तासौं और दिव को न घाव हरियात्या जो॥ जानती भुजंगम को सांस मलयानिल का, मुरछि पर न फेरि चेत सरसात्या जी। विष को बखानती सुधाकर को साँची बंधु, माँगें हूँ कहूँ सौँ रंच आज मिलि जात्यौ जो ॥१०॥ लागत न नैकु हाय औषध उपाय काऊ, झूठी झार फू कहू फकीरी परी जाति है। कहै रतनार न वैरी हू विनाकि सके, ऐसी दसा माहिँ से अहीरी परी जाति है ॥ रावरौ हू नाम लिए नैननि उघा नाहि, आह औ कराह सबै धीरी परो जाति है। पीरी परी जाति है बियोग-अागि हू तौ अब, बिकल बिहाल बाल सीरी परी जाति है ॥१०७॥ मंद भई साँसैं औ उसासै बढ़ि बंद भई, दुख सुख रीति की प्रतीति दहि गई है। कहै रतनाकर न आँस रह्यौ नैननि मैं, ताही संग आस-वासना हू बहि गई है।