पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/३७०

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अब तौ उपाय कछू तुमही बनै तौ करो, चातुरी हमारी तौ सकल ढहि गई है। लीन्हें नाम रावरौ कछूक चौंकि चेतति ही, सेोऊ समुझन की न चेत रहि गई है ॥१०८॥ सोभा सुभ धीर धरनीस के बियोग-दुखहू मैं देखि, वैसियै सुधाकर बदन की। सेनप बसंत के प्रबीन परिचारक जे, पिक परिपाटी पढ़े नेह निगदन की ॥ ॥१०९॥ हाँ तौ हुती मगन लगन-लौ लगाए हाय, लाए उर सुरति सुजान प्रान-प्यारे की। कहै रतनाकर पै सबद सुनाइ टेरि, फेरि सुधि दीनी द्याइ बिरह बिसारे की ॥ कामिनी का नातौ मानि दामिनी दया कै नै कु, कसक मिटाइ देती मानस हमारे की। पारि देती आज वा कलापी के गरे पै गाज, जारि देती जीहा वा पपीहा बजमारे की ॥११०॥