पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/३७३

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नाम सुनि रावरौ विलोकन लगेई हठि. हुलसि सराहि भूरि भाग बन-वेली के ! लागत ही हाथ ब्रजनाथ के नवेली यह, हार कुम्हिलाने चारु चटक चमेली के ॥११७|| मान के न मानति है। जानि के न जानति हो, तुम बिन प्यारे मनमोहन दुखारे हैं। कहै रतनाकर न जानें कहा ठगने मन, बूंदाबन बीथिनि विमूरत सिधारे हैं। बाल दिखराइ कै मसाल के मिसाल दुति, लीजिये बचाइ ठाढ़े कुंज में विचारे हैं। उमड़ि घुमड़ि मढ़ि आए चहुँघाँ ते घेरि, मेघ मनमथ के मतंग मतवारे हैं ॥११८॥ सुलह न मानति हो रारि बृथा ठानति हो, जानति हो हाल छल-बल के निधान को। कहै रतनाकर अनंग के तुरंग चढयौ, संग छबि-कटक बिजै-कर जहान कौ ॥ आनि बलबीर धीर तीर बरसैहै जब, अधर-कमान तानि बिनै-बखान को। छूटि जैहै हुमक सुभट हठहू को सबै, हटि जैहै बीर टूटि जैहै गढ़ मान कौ॥११९।।