पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/३७९

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उनगन ठानति कहा है। ठकुगनी यह, उसक तिहारी सब भाँतिहि अनीठी है। कहै रतनाकर रुचे न रसिया कै कहूँ, फेरि पछितैहै। परी चानि यह ढीठी है। हाँ नौ हित मानों दिन बातहि बखानों तुम, तापै अनुमानौ यह करति बसीठी है। बंद करि दीन्या मुख नंद के लला को बीर, भूधी ते सहस्र गुनी टेढ़ी भैइ मीठी है ।।१३३।। आई नंद-मंदिर में सुंदरी सलोनी बाल, वेष किए सुघर गुसाइनि गुनीली कौ । कहै रतनाकर गुपाल को हवाल हेरि, नैन भरि आए सँध्यौ वैन गरवीली कौ।। अधर दबाइ भाइ हिय को दुराइ बरबस बानक बनाइ अनसीली को। लीन्यौ जस पुंज नयौं मान पारि माननि मैं, काननि मैं कि नाम राधिका रसीली कौ ॥१३४॥ प्यारे मनमोहन मनाई समुझाई तुहूँ, है न चित लाई साकौ सोच निसरा दै तू । अब पछितात अकुलात मान जात बीर, कछु करि जाइ ल्याई पाइनि परा दै तू ॥