पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/३८६

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छाई चिति धारनि अपार पिचकारिनि की, जोहि नर-नारिनि बिमोहि अनुमान्यौ है। फाग-सुख-हाँस रोकि राखन की आस आज, जाल अनुराग को बिसाल ब्रज तान्यौ है ॥१५१॥ अंबर मैं बादल गुलाल को रह्यौ जो छाइ, साई है पितंबर को रंग करसत है । कहै रतनाकर मुकेस बूका धूरि हूँ , पूरि चहुँ कोद रस-मोद बरसत है ॥ अब के अनंग-रंगकार की कृपा सौं कछु, परम अनोखा यह ढंग दरसत है। परसत जोई लाल रंग इन अंगनि मैं, सोई स्याम रंग है करेज सरसत है ॥१५२॥ आए चहुँ ओर तै घुमंडि घनघोर घेरि, टक्करनि लेत ज्यौँ मतंग मतवारे हैं। कहै रतनाकर धराधर अकास धरा, एकमेक है कै धूमधार-रंग धारे हैं। कत्तड़ान क्ड़ान घडान घेडेन घेईन पेनडान, धधकतान धधकतान धधकतान वारे हैं। मनसा-महान-बिस्व-बिजय-विधान आनि, बाजत ये मदन-मुहीम के नगारे हैं ॥१५॥