पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/३९८

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दोऊ ओर राजी हैं बिसद बनराजी बर, नंदन की सोभा सुभ जिनमें बिरानी हैं। कहै रतनाकर सुपाँति पसु-पच्छिनि की, भाँति-भाँति रमति सुहाति सुख-साजी हैं ॥ गंग-जल पाइ कै अघाइ बिसराइ बैर, बिहरत महिष मतंग बाघ बाजी हैं। नाचत मयूर मंजु फनि फुत्कारनि पै, डारनि पै बाज औ बटेर बर्दै बाजी हैं ॥१२॥ परसत नीर तीर बंजुल निकुंज कहूँ, और फल-फून की न मूल उर ल्याएँ हैं। कहै रतनाकर पसारे कर गंग ओर, सुरपुर-पंथ कहूँ तरु बिखरा हैं । मृग कलहंस बली बरद मयूर सबै, पाइ जल ग्रीवहि उचाइ मटकावे हैं। चंद, चतुरानन, पचानन, षडानन के, याननि के हेरि हँसि आनन बिरावै हैं ॥१३॥ करम-पहार-हार-मरम विदारति औ, कूट-कलि कलुषनि कंडति चलति है। कहै रतनाकर उमंडति उछारि आप, ताप पै बरुन अस्त्र छंडति चलति है।