पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/४१७

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निज बल प्रबल-प्रभाव को भरोसा थापि, और सब भावनि का निदरि भजावै है। कहै रतनाकर तिहारे न्याव हू को ध्यान, ताके अभय-दान- -आगै प्रावन न पावै है ॥ तापै हमही को तुम दोषिल बतावत हो, ताते बिलखात यह बात कहि आवै है। राखा रोकि आपनी कृपा जी कह्यो मानै नीठि, ढीठ हमकों जो करि अकर करावै है ॥ ८ ॥ कहत सिहाइ केते प्रतिभा-प्रभाइ पेखि, साँचौ यह सुघर सपूत सारदा की है। केते कहैं मोहि जोहि जागत प्रताप ताका, अरि-उर-साल यह लाल गिरिजा को है ।। सब-सुख-साधन की सिद्धि मनमानी सदा, केते लखि लेखत लडैता कमला की है। एहो ब्रजराज इमि सकल समाज माहिँ, रंग रतनाकर पै रावरी कृपा का है ॥९॥ रावरे भरोसे के सिंहासन बिराजे रहैं, नाम मंजु मंत्री हित-चिंतन करचौ करै। कहै रतनाकर त्यौँ संतत प्रधान ध्यान, आनँद निधान उर अंतर भरयौ करै॥